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________________ २३१ -५२.२०.१८] महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-किंकर हयगलहु पालियछलहु कोवें कहिं वि ण माइउ ॥ - णामें णीलरहु णं कूरगहु अवरु खयरु उद्धाइउ ॥१९॥ दुवई-पभणइ चावपाणि रे सिहिजडि जं पई दुक्कयं कयं ।। तं हयगीवदेवपयपंकयदोहफलं समागयं॥ हो कि बोल्लमि मारमि घल्ल मि । एंव चवेप्पिणु भुय विहुणेप्पिणु। आउहु दावई धावइ पावइ। किंकरि किंकरि कुंजरि कुंजरि। खरखुरखयधरि हरिवरि हरिवरि। णयणाणंदणि संदणि संदणि । चप्पिवि लग्गइ रंगइ णिग्गइ। थामें वग्गइ भंडणु मग्गइ। पइसइ दूसइ रुजैइ रूसइ । हिंसइ तासइ दीसइ णासइ। दुक्का हक्क कोक्का थक्कइ। रिउं पञ्चार चूरइ जूरइ। खलइ णिवारइ दारइमारइ। करिकरचंडिहिं लालापिंडिहिं। दंतादंतिहिं कोताकोतिहिं। णरकिलिविंडिहिं। घत्ता-तब छलका कपट करनेवाले अश्वग्रीवका ( एक और ) अनुचर क्रोधसे कहीं नहीं जा सका । नामसे नीलरथ वह मानो क्रूरग्रह हो, एक और विद्याधर दौड़ा ॥१९|| २० हाथमें धनुष लिये हुए वह कहता है-“हे ज्वलनजटी, तूने जो पाप किया है, अश्वग्रीव देवके चरणकमलोंके द्रोहका वह फल तेरे पास आ गया है । अरे में बोलता क्या हूँ, मैं मारता हूँ, फेंकता हूँ," यह कहकर अपने बाहु ठोंककर वह आयुध दिखाता है, दौड़ता है, उछलता है। अनुचर अनुचरपर, गज गजपर, तीव्र खुरोंसे क्षय धारण करनेवाले अश्ववर अश्ववरपर। नेत्रोंके लिए आनन्ददायक स्यन्दन स्यन्दनपर । चाँप कर लगता है, चलता है, निकलता है, स्थेयसे क्रुद्ध होता है, युद्ध मांगता है, प्रवेश करता है, दूषित करता है, गरजता है, रूठता है, हिंसा करता है, त्रस्त करता है, दिखाई देता है, छिप जाता है, कठिन काम करता है, हकारता है, पुकारता है, ठहरता है. शत्रको ललकारता है. चर-चर करता है, पीड़ित करता है, स्खोलत करता निवारण करता है, विदीर्ण करता है, मारता है, हाथीकी सूंड़के -समान प्रचण्ड, गजमुखोंके अग्रिमकाष्ठों, दांतों, १३. A किंकर। २०.१. AP दुक्कियं । २. AP मारिवि । ३. A भंजइ । ४. A णायभुवदंडहिं । ५. A किलिवंदिहिं । ६. AP add after this: दंडादंडिहिं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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