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________________ २३० महापुराण [५२. १९. १ १९ दुवई-लजिज्जइ रणेण णित्तेएं दुज्जसमलिणकारिणा ।। ओसरु जाहि राय किं एएं पुरिसगुणोहहारिणा ॥ ता भणिउ समरभरधुरभुएण णीलंजणपहदेवीसुएण। रे अक्ककित्ति गुरुसिक्खवंतु लजहि ण केंव विप्पिउ चवंतु । तुह ताएं अवरु वि पई सदप्प जं आणालंघणु कयउं बप्प । तहु लग्गउ हउं णियपरिहवासु सस तेरी पुणु मणु हरइ कासु। ता रविकित्ति दीवियदियंते सुपिसक्क मुक्क धगधगधगंत । खगणाहहु खंडिउ चावदंडु गुणवंतु तो वि किउ खंडेखंडु। अण्णेक्कु सरासणु झ त्ति लेवि राएण तासु बोणे हणेधि । चूडामणि पाडिउ विप्फुरंतु णं णहयलि णिवडिउ रवि तवंतु । मारुयचलंतचलमयरकेउ तावंतरि थक्कउ कार्मदेउ। बंधंतु ठाण संधंतु बाणु तेणक्ककित्ति मारिजमाणु । रक्खियउ पयावइराणएण धणुवेय विवेयवियाणएण। केसरिणा णं तासिउँ'कुरंगु किउ पाराउट्ठउ ते अणंगु। ससिसेहरेण पहु पोयणेसु मेहें पच्छाइउ णं दिणेसु। अंतरि पइसिवि तिणयणु तिसूलि सिहिजडिणा णिजिउ चंदमउलि । १५ सासर ०० अपयश और मलिनताके कारणभूत, तेज रहित युद्धसे तुम्हें लज्जित होना चाहिए । हे राजन्, तुम हट जाओ। पुरुषके गुणसमूहका अपहरण करनेवाले इस युद्ध से क्या ? तब यह सुनकर, युद्धका भार उठानेमें समर्थभुज नीलांजना और प्रभादेवीके पुत्रने कहा, "हे महान् शिक्षावाले अर्ककीति, प्रिय बोलनेवाले तुम्हें लज्जा क्यों नहीं आती? हे सुभट, तुम्हारे पिता और तुमने जो घमण्डपूर्वक आज्ञाका उल्लंघन किया है, उससे अपने पराभवसे आहत हुआ हूँ। तुम्हारी किसका मन अपहरण करती है। तब अर्केकोतिने दिशाओंको दीपित करनेवाले धकधक करते हुए तीर छोड़े।" उसने विद्याधर राजाके धनुषको खण्डित कर दिया। गुणवान् (डोरो सहित ) भी उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तब राजाने शीघ्र एक और धनुष ले लिया, और तीरसे आहत कर चमकता हुआ चूडामणि इस प्रकार गिरा दिया, मानो आकाशतलमें तपता हुआ सूर्य हो। जिसका हवासे चलता हुआ चंचल मकरध्वज है, ऐसा कामदेव इतने में बीचमें आकर स्थित हो गया । लक्ष्य बांधता हुआ, सरसन्धान करता हुआ, उसके द्वारा मारा जाता हुआ अकीर्ति धनुर्वेदके विवेकको जाननेवाले प्रजापति राजाके द्वारा ऐसे बचा लिया गया, मानो सिंहके द्वारा त्रस्त हरिण बचा लिया गया हो। उसने कामदेवको पराङ्मुख कर दिया। चन्द्रशेखरने पोदनपुर राजाको उसी प्रकार घेर लिया जिस प्रकार मेघने सूर्यको आच्छादित कर लिया हो। ज्वलनजटीने भीतर प्रवेश कर त्रिनयन त्रिशलधारी चन्द्रशेखरको जीत लिया। १९. १. AP°धुरभुएण । २. A°दियंति । ३. Aधगंति । ४. AP खंड खंडु । ५. AP बाणेहि हणेवि । - ६. A णहयलणिवडिठ । ७. A reads a as b and b as a । ८. AP कामएउ । ९. A बंधंतु तोणु । १०.P पारिज्जमाणु । ११. AP णासिउ। १२. A थिउ पारद्धिउ गाउ अणंगु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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