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________________ २२६ महापुराण [५२. १५.३णरचरणचारचारियगयाई हरिखरखुरवडणुग्गयरयाई । अभिडिय सुहड गय कायराई रवपूरियदिसगयणंतराई। वावल्लभल्लैझससल्लियाई सोणियजलधारारेल्लियाई । . लुलियतकोतभिण्णोयराई करवालखलणखणखणसराई। चलमुकचक्कदारियउराई लउडीहयचूरियरहधुराई। णिवडतछत्तधयचामराई नृवकॅडयमउडमणिपिंजराई । कयखगविमाणसंघट्टणाई किंकिणिमालादलवट्टणाई। विजाहरविज्जावारणाई सरपूरियमारियवारणाई। जंपाणकवाडविहट्टणाई मंडलियमाणणिल्लोट्टणाई। घत्ता-दिण्णालिंगणई कयतणुवणई दंतपंतिदट्ठोटुई ॥ लुचियकोंतलेइं बिण्णि वि बलई जिह मिहुणई तिह दिट्ठइं ॥१५॥ दुवई-तो हरिगीवरायसेणावइ धूमै सिहो पधाइओ। सिरिहरिमस्सुवीरसहिउ हरिसेणे जगे ण माइओ॥ तेण घाइयं महिणिवाइयं । विलुलियतयं पडियदंतयं । पहरजज्जरं लग्गभयजरं। करनेके युद्ध में लगे हुए, और विजयश्रीको पानेकी कामनावाले थे। जिसमें मनुष्योंके चरणोंके संचारसे गज चलाये जा रहे हैं, जिसमें घोड़ोंके तीव्र खुरोंके पतनसे धूल उड़ रही है। सुभट आपसमें भिड गये, और कायर भाग गये। शब्दोंसे दिशाएँ और गगनांतर भर गये। जो वावल्ल. भाले और झसोंसे पीड़ित हैं, रक्तरूपी जलधाराओंसे सराबोर हैं, जिनमें आंतें कटी हुई हैं, और भालोंसे पेट फाड़ दिये गये हैं, लाठियोंके प्रहारोंसे रथधुराएँ चकनाचूर कर दी गयी हैं, जिनमें छत्रध्वज और चमरोंका पतन हो रहा है, जो राजाओंके कटक और मुकुटमणियोंसे पीले हैं, जो विद्याधर विमानोंसे टकरानेवाले हैं, जिनमें किकिणियां और मालाएँ चकनाचूर हो रही हैं। विद्याधरोंके द्वारा विद्याओंका निवारण किया जा रहा है, तीरोंसे पूरित महागज मारे जा रहे हैं, जंपाणोंके किवाड़ नष्ट कर दिये गये हैं, और माण्डलीक राजाओंका मान नष्ट हो रहा है। घत्ता-जिन्होंने एक दूसरेको आलिंगन दिया है. एक दुसरेके शरीरोंपर घाव किये हैं, जो दांतोंकी पंक्तियोंसे अपने ओंठ चबा रहे हैं, बाल नोंच रहे हैं, ऐसे दोनों सैन्य उसी प्रकार लड़ रहे हैं जिस प्रकार मिथुन ॥१५॥ १६ तब राजा अश्वग्रीवका सेनापति धूमशिख दौड़ा। श्रीहरिश्मश्रु नामक वीरसे सहित वह हर्षके कारण संसारमें नहीं समा सका । उसने आघात किया । धरतीपर गिरा दिया, आँखें छिन्न २. P°खुरखणणु । ३. A°भल्लसरसल्लियाई; P°भल्लरससल्लियाई। ४. A °कंतभिण्णो'। ५. A वरमुषकं । ६. P लउडिययचूरीरह। ७. AP णिवं । ८. A विज्जाकारणई । ९. AP°कुंत । १६. १. A ता हयगीव; P तो हयगीवं । २. A घूमसिहोवधाइओ। ३. A P°मस्सुवीररससहिउ । ४. A हरिसें जगे ण माइओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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