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________________ १९० महापुराण [५०.६.१.. ५ पुणु दलिइ खंभि परिगलियमाणु वेणु मेल्लिवि हरिणु व धावमाणु । णीसासेवेयवढियकिलेसु णीसत्थहत्थ णिम्मुक्ककेसु । अवलोइवि भाइ पलायमाणु करुणारसि थक्कउ सुहडभाणु । पभणइ मा णासहि आउ आउ तहिं अवसरि पत्तउ तहिं जि राउ। 'जुवरायहु कहइ विसाहभइ लइ लइ सुंदर तेरी विहूइ । इहु जाउ जाउ किं आयएण किं कुच्छियपुत्तें जायएण । सिलफोडणमुयमाहप्पदप्प अइसंधिओ सि महुँ खमहि बप्प । जइणिंद दिक्ख महं सरणु अन्जु परिपालहि तुहं अप्पणउ रज्जु । घत्ता-बंधववेइरकरीहि णिविण्णउ नृवैरिद्धिहि ।। पुत्त पडिच्छहि पट्ट हैउं लग्गमि तवसिद्धिहि ॥६॥ खग्गे मेहें किं णिज्जलेण । मेहें 'कामें किं णिहवेण कन्वें णडेण किं णीरसेण दवें भवें कि णिव्वएण तोणे कणिसें किं णिक्कणेण तरुणा सरेण किं णिप्फलेण । मुणिणा कुलेण कि णित्तवेण । रजे भोजे किं परवसेण । धम्में राएं किं णिहएण । चावें पुरिसें किं णिग्गुणेण । ५ खम्भेके टूटनेपर, वन छोड़कर गलितमान हरिणके समान दौड़ते हुए, निःश्वासके वेगसे जिसका क्लेश बढ़ रहा है, ऐसे शस्त्ररहित हाथवाले और मुक्तकेश भागते हुए भाई को देखकर वह सुभटसूर्य करुणा रसमें डूब गया। वह कहता है-हे भाई, मत भागो, आओ-आओ। उसी अवसरपर वहां राजा आया। विशाखभूति युवराजसे कहता है-“हे सुन्दर, तुम अपना ऐश्वर्य ले लो, यह पुत्र पुत्र क्यों हुआ? इस कुत्सित पुत्रके होनेसे क्या । शिला फोड़नेवालोभुजाओंके दर्पवाले हे सुभट, क्षमा करो, तुम्हारे साथ कपट किया। आज मुझे जेन दीक्षा शरण है । तुम अपने राज्यका पालन करो।" पत्ता-इस प्रकार भाइयों में शत्रुता उत्पन्न करानेवाली राजाको ऋद्धिसे वह विरक्त हो गया। हे पुत्र, मैं तपसिद्धिके मार्गमें लगूंगा ॥६॥ बिना पानीके मेघ और खड्गसे क्या? निष्फल (फल और फलक ) से रहित वृक्ष और फलसे क्या? द्रवण (क्षरण ) रहित मेघ और कामसे क्या? तपसे रहित मुनि अथवा कुलसे क्या ? नीरस काव्य अथवा नटसे क्या ? परवश राज्य अथवा भोजनसे क्या ? निर्वय ( व्यय और व्रतसे रहित ) द्रव्य अथवा भव्यसे क्या? णिक्कण ( अन्न और बाणसे रहित) बल और तरकस ६. १. A घणु । २. AP णीसासु । ३. AP हत्थु । ४. A रसथक्क उ । ५. वइरकरीहे णिविण्ण उ । ६. AP णिवरिद्धिहि । ७. K हह । ७.१. A पेन्में; P पेमें। २. P omits किं । Vain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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