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________________ -५०.३.९] महाकवि पुष्पदन्त विरचित तुहं करहि रज्जु मई दिण्णु भाय . रक्खेजसु णियकुलकित्तिछाय। ता थिउ संताणि विसाहभूइ णिग्गेिवि गउ काणणु विस्सभूइ। महि विहवसारु जरतणु गणेवि जोईसरु सिरिहरु गुरु थुणेवि । सहुं भव्वणरिंदहं तिहिं सएहिं थिउ अप्पउ महि वि महन्वएहिं । सो विस्सणंदि जुवराउ जाउ । पत्ता-गंदणवणि कीलंतु हर्णइ मुणालें घरिणिउ ॥ पसरियदीहकरग्गु मत्तउ णं करि करिणिउ ॥२॥ NS विसाहभई सुराकीलंतु हणइ मुणाल रणिउ ॥२॥ काहि वि मयरंदे करइ तिलउ । ___ काहि वि वेल्लीहरि देइ णिलउ । क वि सिंचिये जलगंडूसएण कवि जोयइ णवजोव्वणमएण। काहि वि कामु व कुसुमोहु घिवइ कवि पणयकुविय अणुणंतु णवइ । काहि वि करैलीलाकमलु हरइ कवि लेवि सरोवरणीरि तरइ । छाइयससिसूरमऊहमालि । काहि वि ल्हिक्काइ णीलइ तमालि । दोसइ काइ वि कररुह फुरतु काइ वि करि धरियउ दर हसंतु। पारोहइ क वि दोलायमाण अवलोइय वडजक्खिणिसमाण । कवि बंधिवि मोत्तियदामएण हय कुवलएण कयकामएण। साहाररसिल्लई कणयवत्तु काहि वि तरुपल्लवु दिण्णु रत्तु । दिया, तुम अपने कुल की कीतिछाया रखना।" विशाखभूति उसको राज्य परम्परामें बैठ गया। विश्वभूति घरसे निकलकर वनमें चला गया। धरती और वैभव श्रेष्ठको जीर्ण तृणकी तरह समझ हयोगीश्वर श्रीधर गरुकी स्तति कर सैकडों भव्य राजाओंके साथ अपनेको महावतोंसे विभूषित कर स्थित हो गया। इधर विशाखभूति सुन्दर राजा हो गया तथा विश्वनन्दो युवराज हो गया।" पत्ता-नन्दनवनमें क्रीड़ा करते हुए कभी वह पत्नीको मृणालसे मारता है, मानो मदमत्त गज अपनी फैली हुई सूड़से हथिनीको मार रहा हो ॥२॥ कभी मकरन्दसे तिलक करता, कभी लतागृहमें उसे बैठाता, कभी जलके कुल्लेसे उसे सींचता, कभी नवयोवनके मदसे उसे देखता, कभी कामके समान कुसुमके फूलोंको उसपर डालता, कभी प्रणयसे कुपित उसे मनाता हुआ नमस्कार करता। कभी लीला कमलका हरण करता, और कभी उसे लेकर सरोवरके तीरको पार करता। कभी, जिसने सूर्य और चन्द्रमाकी किरणोंको आच्छादित कर लिया है ऐसे नीले तमाल वनमें छिप जाता है, कभी उसकी चमकती हुई अंगुलियां दिखाई देती हैं, कभी हाथसे पकड़कर कुछ मुसकराता है, कभी वह वटके प्रारोहों पर झूलती है, और वटवृक्षकी यक्षिणीके समान दिखाई देती है, कभी काम कर लेनेके बाद, मोतीकी मालासे बांधकर कुवलयसे आहत करता है। कभी सहकारके रससे आई कमलपत्र और कभी लाल वृक्षपत्र देता है। ५. A णिग्गवि । ६. A ठिउ । ७. A रज्जेहि विसाहभूई सराउ; P एत्तहि विसाहभूई सुराउ । ८. P हण्णइ । ९. AP करि णं । ३. १. A काहि मि । २. AP सिंचह। ३. AP जोहय । ४. A करि लीला। ५. AP लेइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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