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________________ -४८. १५. १५ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित १५ महरिसिहिं महाचरणायराह चउदहसय पुव्वंगाहराई। एक्कूणसट्ठिसहसई सयाई दुइ सिक्खहुं सिक्खोवहि रयाई । भयसहसइं दोसय सावहीहिं पुणु सत्तसहासई केवलीहिं । बारहसहसई वेउव्वियाह इच्छियई सरूवई होति जाहं । पंचेवं ताई णयसयजुयाई मणपजयवंतहं संथुयाई। सयसत्तपमाणुजोइया तहु पंचसहासई वाइयाहं । इय एक्कु लक्खु जायउ जईहिं लक्खाई तिण्णि वरसंजईहिं । सावयह लक्ख दो सुहमईहिं चत्तारि लक्ख जहिं सावईहिं । तेहिं देवहं बुझिय केण संख संखेज तिरिय हयसंककंख । भाभासुरु भव्वंभोयभाणु सहुँ एत्तिएहिं महि विहरमाणु । सो पुठ्वसहासई पंचवीस अतिवरिसई उम्मोहेवि सीस । संमेयसेलि हल्लंततालि सहुँ भिक्खुसँहासें हरिणवालि । सतवप्पहावपरिवियलियासु थिउ देहविसग्गे एक्कु मासु । घत्ता-आसोइ पवणि पुवासाढसिर्यहमिहि ।। अवरोह इ सिधु थिउ मेई णियहि अट्ठमिहि ॥१५॥ महान् आचरणको धारण करनेवाले और पूर्वांगधारी महर्षि चौदह सौ थे। शिक्षा-विधिमें रत शिक्षक उनसठ हजार दो सो, अवधिज्ञानी सात हजार दो सौ, केवलज्ञानी सात हजार, इच्छित रूप धारण करनेवाले विक्रिया ऋद्धि-धारक बारह हजार, मनःपर्ययज्ञानके धारक सात हजार पांच सौ, वादी मुनि पांच हजार सात सौ थे। इस प्रकार एक लाख मुनि थे। श्रेष्ठ संयमवाली आर्यिकाएं तीन लाख थीं। दो लाख श्रावक और चार लाख श्राविकाएँ थीं। वहां देवोंकी संख्या कोन जान सका । शंका और आकांक्षासे रहित तिथंच संख्यात थे। प्रभासे भास्वर और भव्यरूपी कमलोंके लिए सूर्यके समान जिन, इन लोगोंके साथ धरतीपर विहार करते हुए, तीन वर्ष कम, एक हजार पचीस वर्ष पूर्व तक मिथ्यादृष्टि शिष्योंको सम्बोधित कर, आन्दोलित ताल वृक्षोंवाले, और मृगोंका पालन करनेवाले वे सम्मेदशिखर पर्वतपर पहुंचे। एक हजार मुनिके साथ, अपने तपके प्रभावसे आशाओंको गलानेवाले वह, एक माहके लिए प्रतिमायोगमें स्थित हो गये। ____ धत्ता-आश्विन शुक्ला अष्टमीके दिन पूर्वाषाढ़ नक्षत्रमें अपरालके समय वे आठवीं भूमि (सिद्धशिला) में जाकर स्थित हो गये ॥१५॥ १५.१. AP पुग्वंगायराहं । २. A सिक्खावह थियाई; P सिक्खावहि रियाई । ३. A बारहसयाई। ४. A पंचेव ताई णवसंजुयाई; P सत्तेव ताई वयसंजुयाई। ५. A reads aas band basa। ६. A उम्मोहिय वि सीस । ७. A भिक्खसहासें । ८. A सियछट्टिमिहि । ९. A मेइणियइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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