SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२० महापुराण [४५. ८.१२ गुणवंतह संतह महरिसिहिं आदंसियसंसियसुहदिसिहि । "महिवंटयणिकंटयवइहि पंचब्भुय तहु हुय णरवइहि । घत्ता-चक्कवट्टिसिरिलीलइ. एंव तासु गयकालइ । दिट्ठर जिणु तरुणीलइ मणहरणामवणालइ ।।८॥ सुहावह रविप्पहं थिरं पियं णिवाइणा महाणिणा मुएवि सं कयं तवं णिरासयं अदोसयं अरोसयं विहट्टियं चलं खलं मैंओ मुणी अणप्पए बुहत्थुए विहंकरे समाणए गईवहं। गुणप्पहं। सुवं सुयं । सराइणा। पुणो तिणा। रईविसं। गयासवं । अहिंसंयं। अमोसयं । अतोसयं। पलोट्टियं । मणोमलं । हुओ गुणी। सुकप्पए। स अच्चुए। सुहंकरे। विमाणए। दिखायी और सूचित की है, ऐसे गुणवान् और सन्त महर्षियोंके द्वारा मही और पत्तनोंके निष्कंटक स्वामी उस राजाके लिए पांच आश्चर्य उत्पन्न किये गये। घत्ता-इस प्रकार चक्रवर्तीकी श्रीलोलासे उसका समय निकलता चला गया। उसने वृक्षोंसे हरेभरे मनहर वनालयमें जिनके दर्शन किये ।।८।। सुख प्राप्त करानेवाले, गतियोंके नाशक, सूर्यके समान प्रभावाले गुणोंके मार्ग, स्थिर स्थित, उन्हें राजाने प्रेमके साथ सुना और फिर चक्रवर्तीने गतिके अधोन सुख छोड़कर आस्रव रहित, आश्रयहीन अहिंसक अदोष मृषा शून्य अक्रोध, दोष रहित तप किया और चंचल दुष्ट मनोबल को नष्ट कर दिया। वह मुनि मर गये और वह गुणी महान विभासे युक्त शुभंकर सम्माननीय अच्युत विमानमें अच्युतेन्द्र हुआ। १०. A महिवट्टयणिक्कंटयवइहो; Pमहिवद्रयणिकटियमहिहि। ११. A णरवइहो। १२. P तरुलीलइ। ९. १. A omits अहिंसयं । २. A सतोसयं । ३. A वलं। ४. A मुओ। ५. P हओ। ६. A P सुअच्चुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy