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________________ -४४. ११.११ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-तियसेहिं असंखहि संखतिरिक्खहिं सहुं दुच्चरियई खंडिवि ॥ णववरिसविहीणउ जयविजयाणउ पुव्वलक्ख महि हिंडिवि ॥१०॥ महियमहिउ महमहियाणगड सहुँ सीसेहिं समाहिवसंगउ । संमेयहु जाइवि गिरिधीरउ तीस दियह थिउ मुक्कसरीरउ । फग्गुणमासि कालेपक्खंतरि साणुराहि सुहसत्तमिवासरि। सूरुग्गमि बुदेवहं देवें णिकिरियत्तु पत्तु विणु खेवें। णिट्ठिउ अट्ठमवंसुह पढुक्कउ गउ सुपासु पासेहिं विमुक्कार । चंदणकद्दमेण पव्वालिय पउँलोमीसें मालेहि मालिय । दिण्णी मउडाणलजालोलिय चिञ्चिकुमार तणु पज्जालिय । वंदिवि भर्प पावणिण्णासउ णायणाहु गउ णायावासउ। णायारूढउ कहइ णयंगहं पवणवरुणवइसवणपयंगह। घत्ता-जहिं भरह जिणेसहु णाणु सुपासहु पसरइ देवहु केवलिहिं ॥ तहिं वाइ ण वायउ ण तमु ण तेयउ पुप्फेदंतकिरणावलिहि ॥११॥ इय महापुराणे तिसहिमहापुरिसगुणालंकारे महाकइपुष्फयंतविरइए महामव्वभरहाणुमण्णिए महाकन्वे सुपासणिवाणगमणं णाम चउयालीसमो परिच्छेओ समत्तो ॥१४॥ ॥"सुपासचरियं समत्तं ॥ घत्ता-असंख्यात देवों और संख्यात तियंचोंके साथ दुश्चरितोंका खण्डन कर, नो वर्ष कम, जय-विजय करनेवाले एक लाख पूर्व वर्ष धरतीपर विहार कर ॥१०॥ पूज्योंके पूज्य, तेजसे कामका मथन करनेवाले, समाधि लीन, शिष्योंके साथ, पहाड़की तरह धीर सम्मेद शिखरपर जाकर वह तीस दिन तक मुक्त शरीर रहकर फागुन माहके कृष्णपक्षमें शुभ सप्तमोके दिन अनुराधा नक्षत्रमें सूर्योदय वेलामें अनेक देवोंके देवने बिना किसी विलम्बके निष्क्रियत्व ( मुक्ति ) को प्राप्त कर लिया। निष्ठावान् वह आठवीं भूमिमें पहुंच गये, सुपाश्वं पाशके बन्धनोंसे मुक्त हो गये। उनके शरीरको चन्दनसे प्रलिप्त किया गया, इन्द्रके द्वारा मालाओंसे लपेटा गया, अग्निकुमार देवने मुकुटानल ज्वाला दी और शरीर प्रज्वलित कर दिया गया। उनकी, पापका नाश करनेवाली भस्मकी वन्दनाकर इन्द्र अपने निवासके लिए चला गया। अपने ऐरावत नागपर आरूढ़ वह नत शरीर पवन, वरुण, वैश्रवण और सूर्य आदि देवोंसे कह पत्ता-कि जहां सूर्य-चन्द्रके समान किरणावलिवाले भरतजिनेश और केवली देव सुपार्श्वका ज्ञान प्रसरित होता है वहां न वादी है और न प्रतिवादी, न तम है और न तेज ॥११॥ इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित महामण्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका सुपार्श्व निर्वाणगमन नामका चवालीसवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४॥ १०. P मंडिवि । ११.१. A P दिवह । २. P कालि पक्खंतरि । ३. A अमिवसुह। ४.A P पोलोमीसें । ५. A मालह मालिय। ६. P मणिमउहाणलेण जालोलिय । ७. P चच्चिकुमारिहि । ८. A भव्य । ९. AP पुष्फयंत । १०. A सुपासजिणणिव्वाण । ११. A Pomit this line, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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