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________________ - ४४.९.१] करते जे मासहु पक्खि त्रलक्खइ खत्तियदहस एहिं संजुत्ते छुट्ठववासु करिवि कयकिरियहु त्थु महिंददत्तणरराएं तहु घरि तियसणिघोस णिणायई ववरिस छउत्थु हवेष्पिणु पुणु सवणि मूलि सरीसहु महाकवि पुष्पदन्त विरचित 2 णाणावाणवलइयपायउ घत्ता - उट्टंतपर्यंतहिं पुरउ णडंतहिं णविउ णाहु पंजलियेरेहि || हु पे धुणंति रिसि अमर सविसहर एक्क जि फलु जइ भत्ति समुज्जल तो अच्छउ परंतु थुइलक्खई कह सक्कु फणिराउ सरासइ जइ तो किं वायइ वण्णइ जडु वासिदिवसि संभव रिक्खइ । लइ दिक्ख भुवणुत्तमसत्तें । सोमखेड पुरवरु गउ चरियहु । पाराविउ णवेवि अणुराएं । पंचच्छेरयाई संजायई । अच्छउ जिणु णिकपु चरेपणुं । पंचमु उ णाणु तिजगीसहु । देवलोउ णीसेसु वि आयउ । अहिहिं पुणु पंचविहहिं सोले विहहिं वि सुरवरहिं ||८|| ९ Jain Education International माणुस अम्हारिस वि णिरक्खर । लई पुणु हियवसा णउ निम्मल । पाव मुहवायामें दुक्खई । तुह गुणरासिहि छेउ ण दीसइ । जलहिमणि कि आणिज्जइ घडु । ५ शिविका में आरोहण किया, और वह सहेतुक नामके वनमें पहुँचे । ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशीके दिन विशाखा नक्षत्र में, भुवनमें सर्वश्रेष्ठ सत्ववाले उन्होंने एक हजार क्षत्रियोंके साथ दीक्षा ग्रहण कर ली । छठा उपवास कर कृतक्रिया चर्याके लिए वह सोमखेट नगरमें गये। वहां राजा महेन्द्रदत्तने प्रेमसे प्रणाम कर उन्हें आहार कराया। उसके घरमें देवोंके द्वारा किये गये घोष-निनादोंके साथ पांच आश्चर्य उत्पन्न हुए । नो वर्ष तक वह छद्मस्थ अवस्थामें रहे । जिनचर्याका आचरण जिन भगवान् ने किया। फिर सहेतुक वनमें शिरीष वृक्षके नीचे त्रिजगके स्वामीको पांचवां ज्ञान ( केवलज्ञान ) उत्पन्न हुआ । नाना वाहनोंपर अपने पैरों को मोड़ते हुए समस्त देवलोक वहाँ आया । धत्ता - इस प्रकार आठ प्रकार, पाँच प्रकार और सोलह प्रकारके उठते-पड़ते और नाट्य देवोंने अंजलियोंसे सामने से देवको नमस्कार किया ॥ ८ ॥ १०९ १० ९ ऋषि, अमर, नाग और हम जैसे भी निरक्षर मनुष्य आपकी जो स्तुति करते हैं, इसका एक ही फल है कि यदि समुज्ज्वल भक्ति उत्पन्न हो, यदि वह निर्मल भक्ति हृदयमें नहीं आती, तो तुम लाखों स्तुतियाँ पढ़ते रहो, मुखके व्यायामसे केवल कष्ट ही प्राप्त करोगे । इन्द्र, नागराज और सरस्वती कहे, फिर तुम्हारी गुणराशिका यदि अन्त नहीं दीखता, तो जड़ कवि क्या बांचता ओर ३. P बारिसिदिवसि । ४. A संभवरिक्ख; P सुसंभवरिक्वइ । ५. A णिग्घोसणिणाएं । ६. A पंचच्छरियता संजायई । ७. A P छम्मत्थु । ८. A वहेष्विणु । ९. Padds after this: फग्गुणि four पक्खि छट्ठियदिणि, * भे विसाहि पच्छिम समुहद्द दिणि । १०. A P सिरीसह । ११. P अंजलि - कहि । १२. A विहहिं सुरवर हि; P विहहि वि सुरवरेहिं । ९. १. A संधुणंति । २. AP जइ । ३. A तो । ४. AP कहइ । ५. AP जलहिमाणु । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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