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________________ महापुराण [४३. १०.१ १० णमोत्थु भणेवि गहीररवेण | घरं णिउ सो ससियत्तणिवेण । तिणा तहु णिम्मैलु भोयणु दिण्णु मुणिंदणिहालणि संचिउ पुण्णु । णिहेलणि उग्गय अन्मुय पंच अहासवदारई रुभिबि पंच। गओ रिसि घोसिवि अक्खयदाणु हुँबंधुसु वरिसु णिच्चसमाणु । पमाय कसाय विसाय हरंतु छमास विहिंडिउँ वित्त चरंतु । विहूयतमोमयमंदकलंकि चइत्तंछणम्मि पण्णससंकि । सुचित्तहि चित्तइ चिंतविमुक्क दढं मणि पूरिखं बीयर सुक्कु । परंदिसमासिइ वासरराइ उँइण्णउ केवलणाणु विराइ । णियासणचालणचालियसग्गु विमाणपऊरियवारियमग्गु । १० समागउ झत्ति पवाहियपीलु बिडोउ सभिच्चु सचिधु सलीलु । घत्ता-दह भावण वेतर अटुविह जोइस पंचविहाइय ॥ __ सोलह विह कप्पणिवासिसुर जिणु णवंति गुणराइय ॥१०॥ णमो अरिहंत णमो अरिहंत णमो दयवंत णमो दयवंत णमो विसयंत णमो विसयंत । णमोत्थु अभंत भयंत भवंत । १० 'नमस्कार हो' गम्भीर ध्वनिमें यह कहकर सोमदत्त उन्हें अपने घर ले गया। उसने उन्हें निर्मल भोजन दिया और इस प्रकार मुनीन्द्रदर्शनसे पुण्यका संचय किया। उसके घरमें पांच आश्चर्य प्रकट हुए। पांच पापास्रवोंके द्वारको रोककर, महामुनि, 'अक्षयदान' कहकर चले गये । अच्छे बन्धु या शत्रुके प्रति नित्य समानरूपसे रहनेवाले प्रमादों, कषायों और विषादोंको दूर करते हुए और मुनिवृत्तिका आचरण करते हुए उनके छह माह बीत गये। जिसने तमोमय मृगलांछनको नष्ट कर दिया है ऐसी पूर्णचन्द्रमावाली चैत्रशुक्ला पूर्णिमाके दिन, चित्रा नक्षत्र में, चिन्तासे मुक्त अपने सुचित्तमें दूसरा शुक्लध्यान पूरा कर लिया। और जब सूर्य पश्चिम दिशामें पहुंच रहा था उन विरागीको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। अपने आसनोंके डिगनेसे स्वर्ग चलायमान हो गया। आकाशमार्ग विमानोंसे भर गया। अपने हाथीको प्रेरित कर, अपने भृत्यों, पताकाओं और लीलाओंके साथ शीघ्र इन्द्र आ गया। पत्ता-दस प्रकारके भवनवासी, आठ प्रकारके व्यन्तर, पांच प्रकारके ज्योतिष और सोलह प्रकारके कल्पवासी देव गुणोंसे विराजित जिनको नमस्कार करते हैं ॥१०॥ कर्मरूपी शत्रुओंका घात करनेवाले आपको नमस्कार, अर्हन्नाथ आपको नमस्कार, विषयों का अन्त करनेवाले आपको नमस्कार, विषय (वस्तु) को अन्तिम सीमा तक जाननेवाले आपको नमस्कार, दयायुक्त आपको नमस्कार, अदयाको नष्ट करनेवाले आपको नमस्कार, अभ्रान्त भदन्त १०.१. A ससिदत्त । २. A भोयणु णिम्मलु । ३. A णिग्गय । ४. A P सबंधु । ५. A सवेरि । ६. P सुभिच्च । ७. A विहंडिउ । ८. Pउप्पण्णउं । ९. P ताव । ११.१. A P अरहंत । २. A णमोत्थु भयंत । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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