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________________ -४३. ९. १३ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित पत्ता-तावायहिं लहुं लोयंतियहिं णाहहु वयणु समैत्थिउ । ___ अंबरु धावंतहिं दणुयरिहिं चित्तचीरु णावइ थिउ ।।८।। गिरि व्व जलागमणे जलएहिं सुरेहिं पहू ण्हविओ कुलएहिं । समच्चिउ लोयगुरू कुडहिं थुओ दुवईवयणुक्कुडएहिं । सुवण्णमयाइ णरच्छिपियाइ महिंदणियाइ गओ सिवियाइ। वणंतर चारु पहुजियचारु । सकंकणु हारु पमोल्लिवि दोरु । खमाविउ लोउ सिरे कउ लोउ मवण्णवपोउ विसुद्धतिजोउ । करेप्पिणु छठु वि सुठ्ठ वरिछु पदिट्ठसइठु समासियणिछ। समढममासि जेगंतपयासि घणागमणासि हिमालपवासि । दिणे असियम्मि सुतेरसियम्मि दिणेसरि जाम दुयालसियम्मि । विणिग्गउ हत्थु पहूइय चित्त अलंकिय तहिणि संजमत्त । सुयाइं मुणेवि रयाई धुणेवि महन्वय लेवि थिओ रिसि होवि । समं सकिवाहं सहासु णिवाहं तवंकिउ ताहं ण मच्छरु जाहं । घत्ता-वारहविहतवणिवाहणहि धम्मैजोयपरिरक्खहि ॥ पउमप्पहु वड्ढमाणणयरि देउ पइट्ठउ भिक्खहि ॥९॥ घत्ता-तब लौकान्तिक देवोंने आकर प्रभुके वचनोंका समर्थन किया। आकाश में दौड़ते हुए देवदानवोंने जैसे अपने चित्तरूपी चीरको स्थिर कर लिया ॥८॥ जिस प्रकार वर्षाकाल आनेपर मेघोंके द्वारा गिरि अभिषिक्त होता है, उसी प्रकार देवोंने घडोसे प्रभका अभिषेक किया। कटक पुष्पोंसे लोकगरुकी समचंना की। दुव वचनों (द्विपदी वचनों) से उत्कट (गोतों) से स्तुति की। लोगोंके नेत्रोंके लिए सुन्दर, स्वर्णमयी इन्द्रके द्वारा ले जायी गयी शिविकाके द्वारा वह, जिसमें चार पुष्प खिले हुए हैं, ऐसे सुन्दर वनमें गये। अपना कंगन हार डोर छोड़कर लोगोंसे क्षमा मांगकर, सिरका केश लोंचकर, संसाररूपी समुद्रके जहाज तीन योगोंसे विशुद्ध, छठा उपवास कर, श्रेष्ठ वरिष्ठ, अपने हितके द्रष्टा, चारित्रसे आश्रय लेनेवाले वह, आठवें माह ( कार्तिक माह ) जबकि विश्वको प्रकाशित करनेवाला सूर्य, मेघोंके आगमनका नाश करता हुआ, शीतलताका प्रवेश कराता है, कृष्ण पक्षको त्रयोदशोके दिन, सूर्य दो पहर ढल चकता है. चित्रा और हस्त नक्षत्र उगे हए थे, तब वह संयमको यात्रासे शोभित हए। श्रतका अध्ययन कर, पापोंका नाश कर महाव्रत ग्रहण कर और महामनि होकर स्थित हो गये। उनके साथ समान करुणावाले एक हजार ऐसे राजाओंने भी अपनेको तपसे अंकित किया कि जिनमें ईर्ष्या नहीं थी। पत्ता-बारह प्रकारके तपोंके निर्वाहके लिए, और धर्मयोगको रक्षाके लिए, पद्मप्रभु स्वामी आहारके लिए वर्धमान नगरीमें प्रविष्ट हुए ।।९।। ६. A P समत्थियउ । ९.१. A सुवण्णमियाइ । २. A P जगत्तपयासि । ३. A संजमजुत्त । ४. A णिवाहणउ । ५. A धम्मु । ६. P जोइपरिक्खहि । ७. A पयट्ठउ । १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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