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________________ ६८ ५ १० १५ महापुराण सरगंभीरं पणकुश्चारं साहाकारं काऊण अग्घं पत्तं गंधं धूवं चरुवं दीवं दाऊणं । दुणयेतावं मिच्छागावं दुक्कियभाव महिऊणं पव्वयसरि से पर्याणियहरिसे कंचणकलसे गहिऊणं । आसासंते रवियरवंते गयणयलंते चरिऊणं भंगरउद्दे खीरसमुद्दे खिप्पं खीरं भरिऊणं । कीलालोलं गेयरवालं सुरवरमालं रइऊणं ते जलवा जियजलवाहे हत्थाइत्थं लइऊणं । सोहम्मे ईसाणेणं तियस येणेणं संहविओ । दावासं कुसुमं भूतं तेहिं जिनिंदो पुणु विओ सिगुत्तुंगं वसियकुरंगं मेरुं मोत्तुं वारिदरिं 'सोक्खर कोसलणयरिं" आगंतूर्ण पुरिसहरिं । यो गुरुपियराणं दाउँ णहयलदिण्णपया हरिसविसट्टे रईउं णट्टं देवा सग्गं झति गया । घत्ता - सज्जनहं णेहु दिहि दुत्थियहं तरुणिहि पेम्मेपहावउ । ढ़तें वढि पिसुणहं मणि संतावउ ||९|| 1 जोवणभावें देहि चडतें देहपमाणु पत्तु रणचंडहं १० घडियम काले जंतें । Jain Education International [ ४१.९.३ ढई तिणि सई धणुदंड | कर, दर्भासन बिछाकर, गम्भीर स्वर में ओम् के साथ स्वाहाका उच्चारण कर अर्ध-पत्र - गन्ध-धूप-त्ररु और दीप देकर, दुर्नयका सन्ताप, मिथ्यागर्व और पापभावका नाश कर, पर्वतके समान हर्षको उत्पन्न करनेवाले स्वर्णकलशोंको लेकर, उच्छ्वासोंके मध्य, सूर्य की किरणोंसे युक्त आकाशमें चल भंगिमा से भयंकर क्षीर समुद्र में शीघ्र जल भरकर, क्रीड़ासे चंचल, गीतों सुन्दर सुरवरोंकी पंक्ति रचकर, मेघों को जीतनेवाले उन कलशोंको हाथों-हाथ लेकर, सौधर्मेन्द्र, ईशानेन्द्र और देवजनों स्नान कराया तथा वस्त्र- भूषण देकर, उन्होंने जिनेन्द्रको फिर नमस्कार किया। फिर शिखरोंसे ऊंचे हरिणोंसे बसे हुए जलयुक्त घाटियोंसे युक्त सुमेरु पर्वतको छोड़कर, मनुष्योंको सुख देनेवाली अयोध्या नगरी में आकर न्यायरत उन पुरुषश्रेष्ठको माता-पिताको देकर और हर्षविशिष्ट नाट्यका अभिनय कर वे शीघ्र स्वर्ग चले गये । घत्ता - स्वामी के बढ़ने पर सज्जनोंका स्नेह, दुःस्थितों का भाग्य, युवतियों का प्रेमभाव और दुष्टों के मनमें सन्ताप बढ़ने लगा ॥९॥ १० भावसे उनकी देह बढ़ती गयो, और घड़ीके मानसे समय बीतता गया । उनके शरीर २. A दुण्णयभावं । ३. P गहिऊगं । ४. P हत्या हत्यें गहिऊणं । ५. A तियसवरेणं । ६. P संहविरं । ७. P विजं । ८. A घीरदार । ९. P सोक्खयरी । १०. P णयरी । ११. A णरणियराणं । १२. P । १३. P हपहावउ | १०. १. A देह चडतें । २. AP घडियामालें । इयं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
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