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हिन्दी अनुवाद होना अच्छा । यह सुनकर अम्मइया और इन्द्रराज दोनों नागरनरोंने हँसते हुए तथा भारी विनय और प्रणयसे अपने सिरोंको झुकाते हुए यह प्रत्युत्तर दिया-।।
घत्ता-जनमनोंके अन्धकारको दूर करनेवाले, मदरूपी वृक्षके लिए गजके समान, अपने कुलरूपी आकाशके सूर्य, नवकमलके समान मुखवाले, काव्यरूपी रत्नोंके लिए रत्नाकर, हे केशवपुत्र (पुष्पदन्त ) ||४||
जिसकी कीर्ति ब्रह्माण्डरूपी मण्डपमें व्याप्त है, जो अनवरत रूपसे जिनभगवान्की भक्ति रचता रहता है, जो शुभ तुंगदेव ( कृष्ण ) के चरणरूपो कमलोंका भ्रमर है, समस्त कलाओं और विज्ञानमें कुशल है, जो प्राकृत कृतियोंके काव्यरससे अवबुद्ध है, जिसने सरस्वतीरूपी गायका दुग्ध पान किया है, जो कमलोंके समान नेत्रवाला है, मत्सरसे रहित, सत्य प्रतिज्ञ, युद्धके भारकी धुराको धारण करने में अपने कन्धे ऊँचे रखनेवाला है, जो विलासवती स्त्रियोंके हृदयोंका चोर है, और अत्यन्त प्रसिद्ध महाकवियोंके लिए कामधेनके समान है, जो अकिंचन और दीनजनोंकी आशा पूरी करनेवाला है, जिसने अपने यशके प्रसारसे दसों दिशाओंको प्रसाधित किया है, जो परस्त्रियोंसे विमुख है, जो शुद्ध स्वभाव और उन्नत मतिवाला है, जिसका स्वभाव सुजनोंका उद्धार करना है, जिसका सिर गुरुजनोंके चरणों में प्रणत रहता है, जिसका शरीर श्रीमती अम्बादेवीको कोखसे उत्पन्न हुआ है, जो अम्मइयाके पुत्रका पुत्र है, प्रशस्त जो हाथीके समान, दान ( दान और मदजल ) से उल्लसित दीर्घ हस्त (सूंड और हाथ ) वाला है, जो महामन्त्री वंशका गम्भीर ध्वजपट है, जिसका शरीर श्रेष्ठ लक्षणोंसे अंकित है, जो दुव्र्यसनरूपी सिंहोंके संहारके लिए श्वापदके समान है, ऐसे भरत नामके व्यक्तिको क्या आप नहीं जानते ?
घत्ता-आओ उसके घर चलें, नेत्रोंको आनन्द देनेवाला वह सुकवियोंके कवित्वको अच्छी तरह जानता है। गुणसमूहसे सन्तुष्ट होनेवाला वह, त्रिभुवनमें भला है और निश्चय ही वह तुम्हारा सम्मान करेगा ॥५॥
जिसे विधाताने काव्यशरीर बनाया है, ऐसा खण्डकवि पुष्पदन्त यह सुनकर चला। आते हुए भरतने उसे इस प्रकार देखा जैसे सरस्वतीरूपी नदीकी लहर हो। फिर उसने घर आये हुए उस (पुष्पदन्त) का प्रमुख अतिथि-सत्कार विधान किया तथा प्रिय शब्दोंमें सुन्दर सम्भाषण किया-"तुम मानो दम्भसे रहित परमधर्म हो, तुम आये अर्थात् गुणरूपी मणियोंका समूह आ गया, तुम आ गये अर्थात् कमलोंके लिए सूर्य आ गया।" इस प्रकार पथसे थके और दुर्बल शरीरके लिए शुभकर सुन्दर वचन कहकर, उसने ( भरतने ) उन्हें उत्तम स्नान, विलेपन, भूषण, देवांग वस्त्र तथा अत्यन्त स्वादिष्ट भोजन दिया। जब कुछ दिन बीत गये, तो देवीसुत (भरत ) ने कहा-'चन्द्रमाके समान प्रसिद्ध नाम हे पुष्पदन्त, अपनी लक्ष्मी विशेषसे देवेन्द्रको
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