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________________ महापुराण पृष्ठ पंक्ति २५३-१९-२ पांचवीं भूमिमें एक सौ पच्चीस धनुष ऊंचा शरीर होता है। इस प्रकार शरीर बढ़ता जाता है और आपत्ति भी भीषण होती जाती है । २५५-२०-२ सर्वत्र उत्तम आयुसे शब्दसे उत्कृष्ट आयु जानना चाहिये। २५५-२०- घता...''दो कल्पोंमें गृहोंकी ऊँचाई छह सौ योजन है। २५५-२३- उससे ऊपरके दो कल्पोंमें घरोंकी ऊँचाई पांच सौ योजन, उससे ऊपरके दो कल्पों में साढ़े चार सौ योजन, उससे ऊपरके दो कल्पोंमें चार सौ योजन, उससे ऊपरके दो कल्पोंमें साढ़े तीन सौ योजन, उससे ऊपरके दो कल्मोंमें तीन सौ योजन और उससे ऊपरके चार कल्पोंमें अढ़ाई सौ योजन देवगृहोंकी ऊँचाई है। उससे ऊपर तीन अघोप्रैवेयकोंमें दो सौ योजन, उससे ऊपर तीन मध्यग्रंवेयकोंमें डेढ़ सौ योजन, उससे ऊपर तीन उपरिम अवेयकोंमें सौ योजन, ऊपर-ऊपर अनुदिशोंमें पचास योजन और अनुत्तरोंमें पचीस योजन ऊँचाई है। २६१-२६-११ फिर सौधर्मादि प्रत्येक स्वर्गमें क्रमसे सौधर्ममें पांच पल्य, ऐशानमें सात पल्य, सानत्कुमारमें नौ पल्य, माहेन्द्र स्वर्गमें ग्यारह पल्य, ब्रह्म स्वगमें तेरह पल्य, ब्रह्मोत्तरमें पन्द्रह पल्य, लान्तवमें सतरह पल्य, कापिष्ठमें उन्नीस पस्य, शुक्रमें इक्कीस पल्य, महाशुक्रमें तेईस पल्य, शतारमें पचीस पल्य, सहस्रारमें सत्ताईस पल्य, आनतमें चौंतीस पल्य, प्राणतमें इकतालीस पल्य, आरणमें अड़तालीस पल्य और अच्युतमें पचपन पल्य आयु होती है। २६१-२६ घत्ता"उससे ऊपर एक-एक सागर अधिक । २६३-७ ज्योतिष देवोंका अवधिज्ञान संख्यात योजन होता है । यह जघन्य क्षेत्र है। २६३-२८-७ अट्ठाईस, इस प्रकार एक-एक घटाते हुए सोलहवें स्वर्ग में देव बाईस हजार वर्षों में आहार (मानसिक) ग्रहण करते हैं । २६५ घत्ता--नारकियोंके चार गुणस्थान होते हैं और देवोंके भी चार होते हैं। २६७ घत्ता--अनन्तानुबन्धी क्रोध. २६७-३१-२ संज्वलन क्रोध" २७१-३४-२ धर्म, अधर्म, आकाश और कालके साथ रूपसे रहित हैं"धर्म और अधर्म समस्त त्रिलोकमें व्याप्त है ।"परमाणु अशेष अविभाज्य हैं। २७१-३४- पत्ता--पुद्गलके छह प्रकार हैं-सूक्ष्मसूक्ष्म, सूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, स्थूलसूक्ष्म, स्थूल, स्थूलस्थूल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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