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महापुराण
साथ देवोंके द्वारा अभिषेक। (१५) स्नानके बाद अलंकरण । (१६) जिनका वर्णन । (१७) गन्धोदककी वन्दना। (१८) सामूहिक उत्सव (१९) स्तुति । (२०) विभिन्न वाद्योंके साथ इन्द्रका नृत्य; उसकी व्यापक प्रतिक्रिया । (२१) जिनशिशुको लेकर अयोध्या आना;
उनका वृषभ नामकरण । सन्धि ४
७०-९१ (१) देवियों द्वारा बालकका अलंकरण; विद्याभ्यास और समस्त शास्त्रों और कलाओंका ज्ञान । (२) जिनका यौवनवय प्राप्त करना । (३) जिनकी स्तुति । (४-५) शैशव क्रीड़ा। (६) नाभिराज द्वारा विवाहका प्रस्ताव । (७) पुत्रकी असहमति और कामक्रीड़ा और विषयसुखकी निन्दा । (८) चारित्रावरण कर्मके शेष होनेके कारण ऋषभदेवकी विवाहकी स्वीकृति; कच्छ और महाकच्छकी कन्याओंसे विवाहका प्रस्ताव । (९) विवाहकी तैयारी। (१०) मण्डपका निर्माण । (११) वाद्यवादन; कंकणका बांधा जाना। (१२) वरवधू । (१३) कामदेवका धनुष तानना; वाद्य-वादन; कन्यादान । (१४) दोनों कन्याओंका पाणिग्रहण । (१५) सूर्यास्त होना। (१६) चन्द्रोदयका वर्णन । (१७) नाट्य प्रदर्शन ।
(१८) विभिन्न रसोंका नाट्य । (१९) सूर्योदय । ऋषभ जिन राज्य करने लगे। सन्धि ५
९२-११ (१) यशोवतीका स्वप्न देखना । (२) स्वप्नफल पूछना। (३) गर्भवती होना; पुत्रजन्म । (४) चूडाकर्म और अलंकरण । (५) बालकका बढ़ना; सौन्दर्यका वर्णन; सामुद्रिक लक्षण । (६) रूप चित्रण और ऋषभ द्वारा प्रशिक्षण । (७-८) नीतिशास्त्रका उपदेश । (९-१०) क्षात्रधर्मको शिक्षा। (११) राजनीतिशास्त्र । (१२) राज्य-परिपालनकी शिक्षा । (१३) अन्य पुत्रोंका जन्म । (१४) बाहुबलिका जन्म और यौवनकी प्राप्ति । (१५) प्रथम कामदेव बाहुबलिके नवयौवन और सौन्दर्यको नगरवनिताओं पर प्रतिक्रिया । (१६-१७) नगरवनिताओंकी चेष्टाएँ। (१८) ब्राह्मी और सुन्दरीको ऋषभ जिनका पढ़ाना। (१९) कल्पवृक्षोंकी समाप्ति; ऋषभके द्वारा असि मसि आदि कर्मोकी शिक्षा । (२०) उस समयकी समाज व्यवस्थाका चित्रण । (२१) गोपुरोंकी रचना । (२२) ऋषभ द्वारा धरतीका परिपालन ।
सन्धि ६
(१-२) ऋषभ राजाके दरबार और अनुशासनका वर्णन । (३-४) इन्द्रकी चिन्ता कि ऋषभ जिनको किस प्रकार विरक्त किया जाये। (५-९) नीलांजनाको भेजना और संगीत शास्त्रका
वर्णन । नीलांजनाका नृत्य करना और अन्तर्धान होना। सन्धि ७
१२८-१५७ (१-१४) बारह उत्प्रेक्षाओंका कथन । (१५-१९) आत्मचिन्तन और लौकान्तिक देवों द्वारा सम्बोधन । (२०-२१) दीक्षाका निश्चय, और भरतसे राजपाट सम्हालनेका प्रस्ताव; प्रतिरोध करनेके बावजूद भरतको राजपट्ट बांध दिया गया। (२२) सिंहासनपर आरूढ़ भरत और ऋषभनाथ । (२३) वाद्य गान और उत्सवके साथ अभिषेक । (२४) ऋषभ भगवान् द्वारा दीक्षा-ग्रहणके लिए प्रस्थान । (२५-२६) सिद्धार्थवनका वर्णन; दीक्षा ग्रहण करना।
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