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________________ ४८ महापुराण अनुभूतिके द्वारा काव्यमें उसका मानसिक प्रत्यय ही 'प्रेमाख्यानक' काव्य है। उसमें प्रेमाख्यान एक साधन है, जिसमें प्रसंग या प्रकृतिके प्रत्यक्ष संकेतों द्वारा अज्ञातके प्रति प्रेमका प्रत्यय कराया जाता है। इस प्रकारको प्रेमसाधना भी जैनदर्शन-जैसे वीतराग-दर्शनपर आधारित अपभ्रंश चरित-काव्योंमें कल्पना तक नहीं की जा सकती । मुझे विश्वास है कि नव-अनुसन्धानकर्ता ऊपरी-ऊपरी तुलनाके बजाय गहराईसे काव्यगत प्रवृत्तियों और प्रेरणाओंकी छानबीन करेंगे। जहाँ तक पुष्पदन्तका प्रश्न है, उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि उनका यह नाभेयचरित धर्मके अनुशासनके आनन्दसे भरा हुआ है। राग संवेदनाओंका उनके काव्यमें चित्रण है, परन्तु उसका उद्देश्य अज्ञातके प्रति राग संवेदना पैदा करना नहीं है । एक कविके रूपमें पुष्पदन्तने राजसत्ताकी खुली और कड़ी आलोचना की है। परन्तु यह भी नियतिका क्रूर व्यंग्य समझिए कि उन्हें राजपुरुषके आश्रयमें रहना पड़ा। एक जगह वर्णन है कि राजलक्ष्मीसे क्या, जहाँ चामरोंकी हवासे गुण उड़ा दिये जाते हैं। सज्जनता अभिषेक-जलसे धुल जाती है। राजलक्ष्मी दर्प और अविवेकसे भरी हुई है, मोहसे अन्धी और स्वभावसे दूसरोंकी हत्या करनेवाली है, सप्तांग राज्यके भारसे भरित है, पिता और पुत्र दोनोंके साथ एक साथ रमण करती है, कालकूटसे जन्मी है । वह मुखोंमें अनुरक्त है और विद्वानोंसे विरक्त है। अपने समयके राजन्यवर्गको परिभाषित करते हुए बाहुबलि कहता है ___ "जो बलवान् चोर है वह राजा है, दुर्बलको और प्राणहीन बनाया जाता है। पशुके द्वारा पशुके मांसका अपहरण किया जाता है और मनुष्यके द्वारा मनुष्यका धन । रक्षाकी इच्छाके नामपर लोग एक समूह बनाते हैं, और किसी एक राजाकी आज्ञाका पालन करते हुए निवास करते हैं। मैंने तीनों लोकोंको देख लिया है कि सिंह कभी भी झुण्ड बनाकर नहीं रहते। है दूत, मुझे यही अच्छा लगता है कि मान भंग होने पर मर जाना अच्छा; जिन्दा रहना अच्छा नहीं ?" "जो वलवंतु चोरु सो राणउणिव्वल पुण किज्जइ णिप्पाणउ हिप्पइ मिगहु मिगेण हि आमिसु हिप्पइ मणुयहु मणुएण वसु रक्खाकंखह जूहु रएप्पिणु एक्कहु केरी आण लएप्पिणु ते णिवसंति, तिलोइ गविट्ठउ सीहह केरउ वंदु ण दिदउ" यह कथन यद्यपि बाहुबलिका है जो जैन पौराणिक काल गणनाके अनुसार करोड़ों वर्ष पूर्व हुए। फिर भी वास्तविकता यह है कि उसमें कविके समयकी सामन्तवादी मनोवृत्तिका चित्रण है। यह युग (१०वीं सदी) स्वदेशी सामन्तवाद (आभिजात्यवाद ) के ह्रासका युग था। राज्य हथियानेके लिए देशमें व्यापक मारकाट और लूटपाट मची हुई थी। बाहुबलि अपने पिताके द्वारा दिये गये राज्यसे सन्तुष्ट है, परन्तु उसका सन्तोष उस समय आक्रोशमें बदल जाता है कि जब दूत उससे बड़े भाई भरतकी अधीनता मान लेनेका प्रस्ताव करता है, वह कहता है "केसरि केसरु वरसइ थणयलु जो हत्थेण छिवइ सो केहउ सुहडहु सरणु मज्झु धरणीयलु किं कियंतु कालाणलु जेहउ" सिंह की अयाल, वरसतीका स्तन, सुभटकी शरण और मेरी धरती, जो हाथसे छूता है, मैं उसके लिए कालानल और यमके समान हूँ। पुष्पदन्तके समय आभिजात्य वर्गमें तीन ही बातें प्रमुख थीं-स्त्रीकी कुलीनता, भूखण्ड और शरणागतकी रक्षा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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