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________________ १८. १६.९] हिन्दी अनुवाद ४१३ उसके घर भाव और अनुभावका प्रदर्शन करनेवाले बत्तीस हजार नट नृत्य करते थे। चौरासी लाख हाथी, तैंतीस लाख चक्रसहित रथ, तीन करोड़ अभंग अनुचर, अठारह करोड़ घोड़े, एक करोड़ चूल्हे, तीन सौ साठ सुन्दर रसोई बनानेवाले रसोइये। खेतीमें एक करोड़ रथ चलते थे। फलोंके भारसे धरती फूटी पड़ती थी। काल नामकी निधि विचित्र वीणा, वेणु और पटह आदि वाद्य देती थी। महाकाल भी राजाके लिए असि, मषी, कृषि आदि उपकरणोंका संयोजन करती थी। पाण्डुक निधि नाना रंगके ब्रीहि ( शालि ) प्रमुख अनेक प्रकारके धान्य प्रदान करती थी। नैसर्प निधि शयन, अशन और भवन। पद्म वस्त्रोंको, पिंग आभरणोंको अस्त्र-शस्त्र माणव देती थी। स्वर्ण ढोते हए शंखनिधि नहीं थकती थी। समस्त रत्ननिधियाँ सब प्रकारके रत्नों और लक्ष्मी उसके उरतलपर अपने नेत्र प्रदान करती थी। घत्ता-असि, चक्र , दण्ड, धवल छत्र उसकी आयुधशालामें उत्पन्न हुए। कागणी मणि और चर्म मणि भी अपने आप राजाके भाण्डागारमें आ गये ॥१५॥ १६ विजयाध पर्वतपर शोभित मुख अश्व, गज और स्त्रीरूपी रत्नोंकी उत्पत्ति हुई। उसके बाद राजाको गृहपति, स्थपति, पुरोहित और सेनापति प्राप्त हुए । अपने गृहशिखरोंके ध्वजोंसे सूर्यके तेजका निवारण करनेवाले ये चार रत्न साकेतमें उत्पन्न हुए। जो नवनिधियां थीं वे भी उसे प्राप्त हुई कि जो अभिलषित फलरूपोंको सम्पादित करनेवाली थीं। जहाँपर देहरक्षामें दक्ष गणबद्ध सोलह हजार देवोंके विविध घर और स्वर्णधरणीतल थे, विविध आसन और विविध शयनतल थे। विविध छत्र, मुक्तामालाएं, चित्तमें अनुराग उत्पन्न करनेवाले विविध आभरण, शरीरको सुख देनेवाले विविध वस्त्र और विविध सरस भोजन। वह कौन-सा विधाता है, वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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