________________
१६. २६. १५] हिन्दी अनुवाद
३७९ माताके समान है। जब तक यह वेश्यावर है, तबतक अन्यका मुख कौन देखता है। अन्य महिलाको मैं मनमें माताके रूपमें धारण करता हूँ, गुरुके चरणको छूता हूँ कि तुम्हारी उपेक्षा नहीं करूंगा।"
पत्ता-इस प्रकार विटराजों द्वारा कपट कूट और कोमल उक्तियों तथा दानसे वशीभूत कर अनुपमरूपवाला नारीजनका आलिंगनकर रमण किया गया ॥२५॥
२६
रमण करते हुए जोड़ों, चक्रवाक पक्षियों और पथिकसमूह और रत विट राजके लिए चन्द्रमुखी लम्बी भी रात छोटी लगी। तब पूर्वदिशामें सूरज उग आया, जो कामकी आशासे रतिरंग ( कामदेव ) के समान दिखाई दिया, मानो पलाशपुष्पोंका समूह शोभित हो, मानो विश्वरूपी भवनमें प्रदीप प्रबोधित कर दिया गया हो, सुन्दर सूर्य मानो वंशका अंकुर हो। मानो दिनेश चन्द्रमाके क्रोधसे लाल हो उठा हो कि यह पापी (चन्द्रमा) मेरे परोक्षमें आता है और कमलिनीको लता कहकर ( समझकर ) सताता है। ऐसा कहकर जैसे वह आकाशसे लग जाता है मानो निशाचरोंके पीछे लग गया हो। निशाचरने लाल किरण-समूहको रुधिर समझा, लेकिन गृहिणीने छेदवाले किवाड़ोंसे आते हुए उसे (किरण-समूह ) केशरपराग माना, गुफामें रहनेवाली हरिणीने लाल दूर्वांकुर समझा। लाल कमलमें मिला हुआ वह शोभित है, अशोकके पत्तोंमें मिला हुआ शोभित है। जनोंके अधरोंमें मिला हुआ शोभित है, वह राग ( लाल रंग ) महीधरोंके तट और जलकी लहरियोंमें दौड़ा। इस प्रकार 'राग' ( रागभाव और लालिमा ) छोड़ते हुए और गुणोंसे संयुक्त अरहन्तके समान सूर्य भी उन्नतिको प्राप्त हुआ।
पत्ता-भरतके प्रसादसे अन्धकारको नष्ट करनेवाले सूर्यने क्या नहीं दिखाया। लक्ष्मीरूपी रमासे सेवित स्वच्छ सरोवर और पुष्पोंको विकसित कर दिया ॥२६।।.
इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषोंके गुण और अलंकारोंवाले इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महामन्य मरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का बाहुबलि दत संप्रेषणवाला सोलहवाँ परिच्छेद
समाप्त हुभा ॥१॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org