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________________ १६. १७.१४ ] हिन्दी अनुवाद ३६९ घत्ता- दुष्टोंके द्वारा अन्तर पैदा कर देनेपर दूरस्थ भाइयोंका स्नेह नष्ट हो जाता है, सूर्यं कमलोंके लिए किरणें भेजता है परन्तु जलधर उनका निवारण कर देता है || १५ || १६ हे दानवोंको नष्ट करनेवाले कामदेव, सुनो और अपना चित्त सुन्दर बनाओ । त्रिलोकको सतानेवाले अपने बड़े भाई से रूठना ठीक नहीं । चन्द्रमा कौन और उसकी किरणोंका समूह कौन ? समुद्र कौन और उसकी जलतरंगें कौन ? तुम कौन और भरत कौन ? पण्डितोंको यह विकल्प (या भेदभाव ) अच्छा नहीं लगता। क्या में कल्पवृक्षकी फूलोंसे पूजा करूँ ? क्या समुद्रको हाथ के जलसे सोचूँ ? क्या सूर्यके आगे दीप जलाऊँ, मैं हीन हूँ क्या तुम्हें सम्बोधित करूँ ? तात ( ऋषभ ) के बाद भरत राजा है और तुम भुवनमें एकमात्र प्रधान युवराज हो । अतः चित्तभेद मान और अहंकार छोड़कर जीवको एकमेक मानकर, तरुणीजनोंके कण्ठोंको कण्टकित करने वाले, शत्रुरूपी गजोंके दाँतों को परिभ्रष्ट करनेवाले, प्रदीर्घ धनुषों को आकर्षित करनेवाले जिन बाहुओंसे ( जिस भरतका ) आलिंगन किया है उन्हीं बाहुओंसे उसके साथ युद्ध में नहीं लड़ा जाना चाहिए, गुरुजनमें अविनय लज्जित होना चहिए । घत्ता - जो राजा, कुलस्वामी, महाबल, सुजन और गुणी व्यक्तिको नमस्कार नहीं करते उनके घर में दरिद्रता बढ़ती है और उनका यमपुरीके लिए प्रस्थान होता है ||१६|| १७ जो परम चरमशरीरी कुलकर है, पहला राजा है, जिसने जिनके वंशको प्रकाशित किया है, और कमलनयनी राजलक्ष्मीसे भूषित किया है। जिसका चक्र शत्रुचक्रको नष्ट कर देता है, जिसका दण्ड शत्रुदण्डको रोक देता है, जिसका मन्त्री आगेकी बात देख लेता है, जिसका तुरग हृदय के साथ दौड़ता है, जिसका कागणी मणि सूर्य और चन्द्रमाकी भी अपेक्षा नहीं रखता, जिसका स्थपति चाहे तो त्रिभुवनकी रचना कर सकता है। विरुद्ध होनेपर वह छत्र छा लेता है, और शत्रुओंके तलवारसे प्राण निकाल लेता है । चमू ( सेना ) को पकड़ते हुए उसका वर्म अत्यन्त शोभित होता है, जिसने मागध और वरतनुको जीत लिया है और विजयार्ध पर्वत निवासी देवको भी जीत लिया है। जिसने तिमिस्राके किवाड़ोंको विघटित कर दिया और सिन्धु देवीका अभिमान चूर-चूर कर दिया । हिमवन्त कुमारको आज्ञा ( अधीनता) देकर फिर वह कैलास पर्वतके तटपर आया । वहीं उसने अपना नाम लिखा, जिसे छायाके छलसे चन्द्रमाने ग्रहण कर लिया, वही नाम चन्द्रमामें दिखाई देता है वह कलंक नहीं है, राजा भरतके नामसे अंकित होकर चन्द्रमा सशंकित परिभ्रमण करता है । मेघकुलोंको बरसानेवाले नागकुलों और अमषंसे भरे हुए म्लेच्छकुलों को जिसने जीत लिया है, और मानो जिसने हिमशिखरके मुकुटवाले गंगाकुटको भी भय उत्पन्न कर दिया है । ४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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