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________________ १६. १५. १५ ] हिन्दी अनुवाद ३६७ घत्ता - जो पुष्करिणियों, क्रीड़ागिरिवरों, जलखाइयों, प्राकारों तथा मोतियोंके तोरणोंवाले चारों द्वारोंसे अलंकृत - शोभित है ||१३|| १४ ऐसे उस पोदनपुर नगर में बृहस्पतिके समान रूपवाला प्रवेश करता हुआ राजदूत राज्यालयके सुन्दर द्वारपर लोगोंके द्वारा देखा गया। वहां स्वर्णदण्ड धारण करनेवाले सुन्दर विचारशील आश्चर्यचकित एवं बुद्धिमान् प्रतिहारसे वह बोला, "राजासे कहो कि द्वारपर प्रभुका दूत खड़ा है ।" यह सुनकर लाठी हाथमें लिये हुए मस्तक से प्रणाम कर प्रतिहार कुमारसे कहता है, " द्वारपर राजाका दूत स्थित है, हे स्वामी अवसर है कि 'हां-ना कुछ भी कह दें ।" तब कामदेव बाहुबलिने कहा, “ मना मत करो। भाईके अनुचरको शीघ्र प्रवेश दो ।" तब यष्टि धारण करनेवाले प्रतिहारीने यशसे निर्मल प्रसन्न मुखमण्डल दूतको प्रवेश दिया। सभा के बीच बैठे हुए बाहुबलीश्वरको दूतने इस रूपमें देखा मानो इन्द्र हो । हस्तकमलोंकी अंजलि जोड़कर उसने संस्तुति की - "तुमने अपने परिणामसे किसको वशमें नहीं कर लिया ।" घत्ता - तुम्हारी धनुष - डोरीके टंकारसे किसने मान नहीं छोड़ दिया । हे कामदेव, तुमने अपने पांच ही तीरोंसे समस्त त्रिलोकको जीत लिया ||१४|| १५ "काम और भोगोंको जिन्होंने भोगा है ऐसे लोग कहे गये श्रुतिमधुर प्रिय वचन और जगका विमर्दन करनेवाले तुम्हारे विजयके नगाड़ोंका शब्द नहीं सुनते । हे रतिरूपी रमणीके वर कामदेव, आपकी जय हो । भ्रमरबालाको डोरीपर सर-सन्धान करनेवाले आपको देखकर नारीके ऊपरका वस्त्र गिर जाता है, और नीवि निबन्धन खुल जाता है। पक्का बँधा हुआ भी केशभार खुल जाता है, रज होने लगता है, श्रोणीतल खिसक जाता है। नेत्रयुगल चंचल होकर मुड़ने लगता है, शरीर पसीना-पसोना हो जाता है । रम्भा नवकदलीकी तरह हिलने लगती है, रतिकी हवासे और अधिक कँपने लगती है । हे देव, तिलोत्तमा क्षण-क्षण खेदको प्राप्त होती है और विरहसे उर्वशी खेदको प्राप्त होती है । हे स्वामी, मेनका थोड़े पानीमें मछली की तरह सूर्यकी किरणोंके सन्तापसे सन्तप्त हो उठती है ।" इस प्रकार स्तुति करते हुए दूतको उसने आसन, वसन और भूषण दिये और सम्भाषण किया - "हिमगिरिसे लेकर समुद्र पर्यंन्त, महीराज मेरे भाई भरतका कुशल-क्षेम तो है ? कुरुवंशके राजाका कुशल-क्षेम तो हैं, समुद्रके समान निर्घोषवाले ( उनका ) कुशल-क्षेम तो है । नमि-विनमि कुमारका कुशल-क्षेम तो है, राजाके परिवारका कुशलक्षेम तो है ।” दूत बोला - "हे राजन्, कुशलक्षेम है, समस्त राजसमूहका कुशलक्षेम है ? सुधीजनोंमें उत्कण्ठा पैदा करनेवाला एक ही अकुशल है और वह यह कि हे देव आप बहुत दूर हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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