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परिचय [प्राचीन संस्करण]]
महापुराण या त्रिषष्टिमहापुरुषगुणालंकार पुष्पदन्तके तीन ज्ञात अपभ्रंश ग्रन्थों में से सबसे प्राचीन और बड़ा है। दो छोटी रचनाओंमें-से जसहरचरिउका सम्पादन मैंने किया था जो कारंजा जैन सिरीज जिल्द 1, 1931 में प्रकाशित हुई। णायकुमारचरिउका सम्पादन प्रोफेसर डॉ. हीरालाल जैनने किया जो देवेन्द्रकीति जैन सीरिज जिल्द 1 कारंजा से 1933 में प्रकाशित हुआ, मैं अब पाठकोंके सम्मुख महापुराणका पहला खण्ड प्रस्तुत कर रहा हूँ जो आदिपुराणके समकक्ष है, और आशा करता हूँ दो और जिल्दोंमें इसे पूरा कर सकूँगा । जब मैंने जसहरचरिउकी भूमिकामें यह घोषणा की थी कि मैंने महापुराणके सम्पादनका काम अपने हाथ में लिया है, उस समय मैंने कल्पना तक नहीं की थी कि यह कितना कठिन कार्य है, और यह कि सम्पादक और प्रकाशकोंको आर्थिक तथा दूसरी कितनी कठिनाइयां होंगी। परन्तु मैं प्रसन्न हैं कि प्रतीक्षाके लम्बे छह वर्षोंके बाद भाषाविज्ञानके अध्येताओं और जैनसंस्कृतिके विद्यार्थियोंको उस महान कार्यका पहला खण्ड भेंट कर सका। अब मैं पाठकोंको यह विश्वास दिला सकता है कि यदि दूसरी कठिनाइयां नहीं आयीं तो मैं आगामी दो या तीन वर्षों में शेष भाग भेंट कर सकूँगा जिससे पुष्पदन्तके अपभ्रंशके तीन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशमें आ सकें।
इस जिल्दमें कुल 102 सन्धियोंमें-से 37 सन्धियां हैं। यह खण्ड प्रसिद्धितः आदिपर्व या आदिपुराणके रूपमें ज्ञात है, और यह ऋषभ जीवनका वर्णन करता है, जो पहले तीर्थकर है, और भरतका जो पहले चक्रवर्ती हैं। दूसरी जिल्द अड़तीसवीं सन्धिसे प्रारम्भ होती है और अस्सीवी सन्धिमें समाप्त होती है। तीसरी जिल्दमें शेष सन्धियां पूरी होंगी। डॉ. लुडविग अल्सफोर्ड (हमबर्ग जर्मनी) ने हाल में रोमन लिपिमें, महापुराणके एक भागका 'हरिवंशपुराण' नामसे प्रकाशन किया है, जिसमें 81 से 92वीं तक सन्धियां हैं। इस भागका देवनागरी लिपिमें सम्पादन किया जायेगा, जो तीसरे भागमें सम्मिलित किया जायेगा, जिससे समूचा काव्य जनताको एकरूपमें उपलब्ध हो सके । इसके सिवाय हमारे पास इतनी अधिक पाण्डुलिपियां हैं, (उसकी तुलनामें जो डॉ. अल्सफोर्डके समय उपलब्ध थीं) इनसे उनके कार्यमें कुछ सुधार होना सम्भव है।
महापुराणका सम्पूर्ण पाठ लगभग रायल आकारके दो हजार पृष्ठों में समाप्त होगा, उनमें-से यह जिल्द 600 पृष्ठोंकी है। इससे स्पष्ट है कि समस्त महापुराण एक जिल्दमें सुविधाजनक ढंगसे नहीं आ सकता था। इसलिए मेरा विचार है कि प्रत्येक जिल्दमें भूमिका दी जाये, जिसमें उस जिल्दसे सम्बन्धित समस्याओंका विचार हो । जहाँ तक सम्पूर्ण रचनासे सम्बन्धित बड़े प्रश्नोंका सम्बन्ध है, मैं उनका विचार तीसरी और अन्तिम जिल्दके लिए सुरक्षित रखता हूँ। इसके अतिरिक्त जसहरचरिउ और णायकुमारचरिउकी भूमिकाओंमें कवि पुष्पदन्तकी भाषा छन्द आदिके विषयमें कुछ जानकारी दी है, आशा की जाती है कि पाठक उसे वहाँसे प्राप्त कर लेंगे।
दी क्रिटीकल एपेरेटस पृष्ठ 14 से 19 तक अर्थ स्पष्ट है, इसमें आधारभूत पाण्डुलिपियोंका विवरण है। महापुराणके प्रशस्ति छन्द
जब मुझे जसहरचरिउके सम्पादनके सिलसिले में पाण्डुलिपि सामग्रीके अध्ययनका अवसर मिला लो मैंने पाया कि कुछ पाण्डुलिपियोंमें सन्धिके प्रारम्भमें कविके आश्रयदाता ननकी प्रशंसामें कुछ छन्द हैं,
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