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________________ १५. २४.१०] हिन्दी अनुवाद ३५१ २३ अत्यन्त विशाल चन्द्रमाकी किरणराशिका हरण करनेवाले पर्वत शिखरपर चढ़कर परमात्माका पुत्र प्रवेश करता है और जहां समवसरण है वहां पहुंचता है। कामदेवका नाश करनेवाले परमात्माको उसने इस प्रकार देखा जैसे प्यासे हरिणने कमलसरोवरको देखा हो। तब भरतने तरह-तरहके छन्दोंके प्रस्तारवाली सुलक्षण वाणीमें खूब स्तुति की, हे अरहन्त अनन्त, भव्यरूपी नक्षत्रोंके चन्द्रजिन, तुम्हारी सेवासे सुख होता है, तुम तृष्णारूपी नदीके तीरपर आ गये, परन्तु काम तुम्हारे पास नहीं पहुंचा। तुमने क्रोधकी ज्वालाको शान्त कर दिया है। हे ऋषि, तुम भुवनत्रयके स्वामी हो, हे अहिंसाश्रेष्ठ देव, तुम्हें देखकर शबर दण्डसे सांपको नहीं मारता। उसे नकुल भी कभी नहीं खाता और व्याघ्रोंका समूह, महिषोंका अन्त करनेवाला नहीं होता। घत्ता-हे कैलासवासी, आपके द्वारा सम्बोधित खेचर कैलासपर रहनेका व्रत लेकर, कैलासवास ( मद्यभाजन और मद्य पोनेको आशा ) छोड़कर स्थित हैं ॥२३॥ हे ब्रह्मन्, तुमसे निकले हुए वचन सुनकर इस गिरि-काननमें कहीं भी वध नहीं होता। हे परलोक पथको दिखानेवाले आपकी जय हो । यहाँ सिंह और शरभ एक साथ रहते हैं, मयूरोंके च्युत पंखोंमें शबरी निवास करती है । हे स्वामी, उसने आपसे व्रत ग्रहण कर लिया है अतः वह श्वापदोंके लिए ( वधके ) गीत नहीं गाती । हे स्वामी, तुमने मार्जारोंको मांसगृद्धि ( लोभ ) और मधु ( सुरा ) के मार्जारों ( मद्यपों) को मदिरा, जारोंको परदाराका निवारण कर दिया । तुम विद्यारतोंके अच्छे स्वामी हो। हे स्वामी, आदमीका जो पाप और झूठ भ्रमर और अंजनका अनुकरण करता है (पाप लिप्त होता है ) उसे मुंहसे निकलते ही तुम पकड़ लेते हो। हे देव, आपके होनेपर आकाश देवताओंसे व्याप्त हो जाता है। घत्ता-इस प्रकार अमरों, असुरों, मनुजों, पक्षियों, नक्षत्रों और नागोंके द्वारा वन्दित पंचेन्द्रियोंको जीतनेवाले परमेश्वरको भरतके द्वारा स्तुति की गयी ॥२४॥ इस प्रकार वेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित तथा महामव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका उत्तर भरत प्रसाधन नामक पन्द्रहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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