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________________ १५.९.४] हिन्दी अनुवाद करनेवाले प्रथम तीर्थंकर ऋषभ जिनका पुत्र हूँ, नामसे भी भरत, जो धरतीतलपर श्रेष्ठ भरताधिपति कहा जाता है, और मैंने हिमवन्त समुद्र पर्यन्त छह खण्ड धरतीको स्वयं जीता है।" तब देवोंने साधुकार किया और भरतका जयजयकार किया कि तुम्हारे समान कोई चक्रवर्ती नहीं है, कौन इस प्रकार चन्द्रमामें अपना नाम अंकित करता है, कमल हाथमें लिये कमलमें निवास करनेवाली और कमलमुखी लक्ष्मी किसके आगे-आगे दौड़ती है ? किसका धन दारिद्रयका अपहरण करनेवाला है? किसका यश त्रिलोकगामी है? किसकी तलवार शत्रका ध्वंस करनेवाली है ? तुम्हें छोड़कर कौन कल्पवृक्ष है ? तुम्हें छोड़कर ज्ञानका घर कौन है ? और किसका पिता परमात्मा देव है ? ___ पत्ता-रूप, विक्रम, गोत्र, बल और न्याय-युक्तिमें तुम तुम्हारे समान हो दूसरे मनुष्य मात्रसे क्या? ॥७॥ जिसमें (पर्वतमें ) सारस सरोवरोंमें क्रीड़ा कर रहे हैं, चम्पक वृक्षोंकी लक्ष्मी दिखाई दे रही है, काननमें गज परिभ्रमण कर रहे हैं, कुंजोंका पराग आकाशके आंगनमें छा गया है, कल्पवृक्ष फलोंके भारसे नत हो गये हैं, सुखकर लतागृहोंमें विद्याधर विट हैं, औषधियोंसे नाग हटा दिये गये हैं, वन सुरभियां (गायें ) वृषभरतिको चाह रही हैं, ऐसे उस स्वच्छ पर्वतको छोड़कर, ध्वज सहित दूसरोंकी धरती छीननेवाली, प्रचुर अश्वोंवाली और सारथियोंके द्वारा होके गये रथोंसे युक्त सेना अपने प्रभुके साथ चली। अभिमानी और निःशंक मति वह पूर्व दिशाको ओर प्रस्थान करता है। वह हिमवन्तके तलभागसे जाता है। और जाते हुए कुछ ही दिनोंमें धरतीका अतिक्रमण कर जाता है। जिसमें गो. गर्दभ. गज और महिषदल हैं. ऐसी समस्त भमिका आश्रय लेकर और रौंधकर सैन्य अपने स्वामीका चन्द्रबल देखकर मन्दाकिनी नदीके किनारे ठहर गया। विश्वमें प्रसिद्ध तलवारोंकी धाराओंके समान निर्मल राजाको छावनियोंमें स्थित अनुगामी सैनिकोंसे ___घत्ता-हिमवन्त पहाड़के शिखरका सफेद अग्रभाग ऐसा दिखाई देता है मानो भरतका स्वर्गमें लगा हुआ यशविलास हो ॥८॥ जो चन्द्रकान्त मणियोंसे युक्त है, जिसमें पशु विचरण करते हैं, जो उपवनोंसे गम्भीर है, जिसमें बादलोंसे रहित घर हैं, जो पक्षि-कुलको धारण करती है, ऐसी गंगाके शिखरपर गुणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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