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________________ १५.५.९] हिन्दी अनुवाद ४ उसने इस प्रकार गर्जना की और फिर अपना काम सम्हाला । उसने वैरी परम्पराका अन्त करनेवाले बाणको देखा, जो पुंखोंसे पत्रित, दीप्तिसे दीप्त, चित्रसे चित्रित और मन्त्रसे मन्त्रित था, जो हृदयमें सोचा गया और राजा ( भरत ) के द्वारा छोड़ा गया था । गन्धसे चर्चित, फूलोंसे अंचित और पुण्योंसे संचित उसे कोई नहीं बाँच सका। तब उसमें लिखे हुए सूरसमूहके द्वारा महनीय, दिग्गजों को जीतनेवाले निर्णायक वागेश्वरी देवीके अंगस्वरूप छन्दोंमें रचित, बिन्दुओंसे युक्त मात्राओंसे रचित, पंक्तियोंमें मुड़े हुए सुन्दर, सघन रूपसे लिखे गये सरस और मीठे और इष्ट, सुन्दर अक्षरोंको उसने देखा । वे हृदय में प्रवेश कर गये । "शत्रुरूपी सरभके लिए सिंहके समान भरतकी आज्ञासे जो जीता है वही जीता है, दूसरेका क्षयकाल शीघ्र आ जाता है, यम भी निश्चित रूप से मरता है ।" बार-बार उस पत्रकी देखकर और इस प्रकार उसे पढ़कर युद्धको शान्त करनेवाले दूसरे देवोंके साथ ३३३ घत्ता - चामरों, स्वर्णंदण्डों, रत्नों, मोतियोंके द्वारा और अपने भुजदण्डों से प्रणाम करते हुए उसने चक्रवर्तीसे भेंट की ||४|| Jain Education International ५ राजाने रत्नोंसे पूजा कर हिमवन्त कुमारको विसर्जित कर दिया । वह दासता स्वीकार कर चला गया । त्रिभुवनमें जय प्राप्त करनेवाला राजा भरत सिंहकी गर्जनासे भयंकर गुहारूपी घरवाले वृषभ महीधरके निकट आया । पहाड़की मेखलासे व्याप्त घन ऐसा दिखाई देता है, मानो धरतीका एक स्तन हो । निर्झरके जलरूपी दूधके प्रवाहको धारण करनेवाला जो भीलोंके बच्चोंके लिए अत्यन्त सुखकर है, कामदेवके समान रतिकारक है, कुपुरुषके प्रसारके समान मदवाला है, प्रवर नृत्यके समान रसमय है, बहुत-से नामोंसे अलंकृत बहुविवर ( बहुछिद्रवाला, बहुत श्रेष्ठ पक्षियोंवाला ) है । जो मानो वहुविद्रुमोघ ( प्रवालोध, विशिष्ट द्रुमोघ ) वाला समुद्र है, जो मानो बहुपुण्य प्रकाशित करनेवाला पुण्यका भार है, मानो अनेक कंकणवाला धरतीरूपी महिलाका For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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