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________________ १३.११.१२] हिन्दी अनुवाद ३११ गुरुवंशको, स्थिरने स्थावरको प्रतिगर्जन करनेवाले गजने गरजते हुए गजको, ऊर्ध्वध्वज और तुरंग सहित उसने हिनहिनाते अश्वको, प्रतिज्ञा पालन करनेवाले उस श्रावकने अत्यन्त श्वापदों को और राजाने राजाको विजयके लिए नष्ट कर दिया । घत्ता - पूर्व और पश्चिम समुद्र तक फैला हुबा पर्यंत अपनी लम्बाईसे ऐसा शोभित है, मानो तीन-तीन खण्डों के लिए देवने भूमिका सोमादण्ड स्थापित कर दिया हो ॥१०॥ ११ उस अवस पर गुहाद्वारसे दूर, जहां सुर-तरुवरोंके कारण सूर्य ढका हुआ था, ऐसे गहन वनमें षडंग सेना ठहरा दी गयी। वहीं जल हाथियोंके दांतोंके प्रहारसे कलुषित था, सरोवर भैंसों के समूह मर्दन से कीचड़मय था, वृक्ष काटनेवालोंके कुठारोंसे छिन्न थे । पके फल चख लिये गये, आर्द्र पत्ते तोड़ लिये गये, गोमण्डलोंके द्वारा घास चर लिया गया, आम्रवन मसल दिये गये, कोकिलकुल उड़ा दिये गये, भयसे त्रस्त होकर भील चिल्लाने लगे । कमल तोड़कर छोड़ • दिये गये । भ्रमरकुल उड़कर दसों दिशाओं में चले गये । सुन्दर मृगकुल भाग गये, यहाँ-वहाँ सहसा तितर-बितर हो गये । रतिघरोंमें और नवलताघरोंमें अनुरक्त नरमिथुन सो रहे थे । राजा के हाथियोंने विन्ध्याके गजको विदीर्ण कर दिया । और गरजते हुए सिंहको सुभटोंने मार डाला । घत्ता - वनश्री अच्छी तरह उजाड़ दी गयी इस समय जनपद यहां निवास करेगा, यह देखकर भरताधिप राजा मानो कुन्दपुष्पोंके द्वारा हँस रहा था ॥ ११ ॥ Jain Education International इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारवाले इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका त्रिखण्ड वसुन्धरा प्रसाधक नामका तेरहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ १३ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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