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________________ १३. १०.१९] हिन्दी अनुवाद पढ़ा जो मानो मात्रावृत्तवाले मात्राओंसे युक्त नागर अक्षर हों। "मैं दानवोंका मर्दन करनेवाला ऋषभका पुत्र चक्रवर्ती हैं। यदि तम मझ भरतको विश्व में भय उत्पन्न करनेवाली प्रियकारी और पराभव करनेवाली सेवा करते हो तो जीवित रह सकते हो, नहीं तो तुम विजयश्रीको माननेवाले मेरी तलवारके पानीको निश्चित रूप पिओगे।" उसने उसे इस प्रकार बांचा और अपना काम समझ लिया। वह वहां गया जहां देवेन्द्रके समान पृथ्वीका राणा स्थित था। अपनी कान्तिको छोड़ देनेवाले राजा प्रभासने भरतको इस प्रकार देखा जिस प्रकार शुभ परिणाम भव्यने प्रणामपूर्वक अरहन्तको देखा हो। पत्ता-श्रेष्ठ वाहनोंमें चलनेवाले उस वसुन्धरानाथको कुसुम, कल्पवृक्षोंके फल, रत्न, वस्त्र और भूषण उसने प्रदान किये ।।९।। गंगा और सिन्धु नदियोंके द्वारा अपनी सीमा निश्चित कर पूर्व और पश्चिम दिशामें प्रवेश कर उसने वैरभाव धारण करनेवालोंको परिस्थापित किया। विजयाध पर्वतके ऊपर स्थित अत्यन्त सम्पन्न, दोषोंसे प्रचुर उन म्लेच्छ खण्डोंको तलवारसे जीतकर, आर्यखण्डमें दण्ड स्थापित कर मालव, मागध, बंग, अंग, गंग, कलिंग, कोंग, पारस, बब्बर, गुर्जर, वराड, कण्णाड (कर्णाटक), लाट, आभीर, कीर, गान्धार, गौड़, नेपाल, चोड ( चोल), चेदीस, ( चेदि ), चेर, मरु, दुन्तरणी, पांचाल, पण्डि (पाण्डु ?), कोंकण, केरल, कुरु, कामरूप, सिंहल, प्रभूत, जालन्धर, यादव और पारियात्रके राजाओंको जीतकर, समस्त प्रत्यन्तवासियोंको लेकर, अपनी मुद्रा देकर, खेल-खेलमें तीन खण्ड धरती जीतकर, तलवार अपने हाथमें लेकर सेनाको सहायतासे भरत विजयाद्ध पर्वतके सम्मुख चला। कुछ दिनोंमें वह उस पर्वतके शिखरपर इस प्रकार पहुँचा जैसे मन मोक्षपर पहुँचा हो । उसने पर्वत देखा। सुस्वर उसने सुसरोवर, और पर्वतने राजाको देखा। रथ सहित उसने भीमसरोवर ( मानसरोवर ) नष्ट कर दिया, और पूजा सहित उसने मधुयुक्त को। कटक (सेना) से अंकित उसने कण्टकित भागको, तुंग उसने तुंगको, गुरु ( महान् ) वंशमें उत्पन्न उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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