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११. १५. १४ ]
हिन्दी अनुवाद
२९१
स्फरित
जैसे वह मोतीरूपी अक्षत फेंक रहा है, जल ऐसा मालूम होता है मानो अर्धांजलिका जल हो। भयके कारण जैसे उसने राजा ( भरत ) की मर्यादा ग्रहण कर ली हो, जैसे वह पानीके भीतरके पहाड़ दिखा रहा हो। मानो चलते हुए और जल-मानवरूपी अनुचरोंकी अंगुलियोंसे
त जलमदगज, प्रवर प्रवाल और माणिक्य उपहारमें दे रहा हो, मानो किनारोंके लतागह दिखा रहा हो, मानो बड़वानलरूपी प्रदीप जला रहा हो, मानो घेरकर जम्बूद्वीपकी रक्षा कर रहा हो। जिस प्रकार शंखोंको बजाता है, उसी प्रकार शंखोंको धारण करता है, प्रभुकी आज्ञासे किंकर क्या नहीं करता ? जिसमें विविध जलचरोंके शब्द हो रहे हैं, मानो ऐसे बड़वामुखोंसे वह कहता है कि हे राजन् ! आपको विद्रुमको ललिमासे क्या प्रेम ? कि जिसके पिता त्रिलोक पितामह हैं। हे महीपति, आप अपनी तीखी भल्लिकाकी ओर न देखें, आपकी बात मेरे लिए मर्यादाकी रेखा है। मैं जबतक यहां स्थिर होकर रहता हूँ तबतक महोतलका उल्लंघन नहीं करूंगा। मैं अब आपकी मुद्रासे अंकित समुद्र हूँ। इसलिए मुझपर कुछ भी भयंकर ईर्ष्या नहीं करिए।
पत्ता-वह अपना खारापन नहीं छोड़ता। लोग यह क्यों कहते हैं कि स्वभावको दवा नहीं होती। जिसका नाम समुद्र है ( सायर-सागर); वह अवश्य ही अपने स्वामीसे सायर ( सादर ) बात करता है ॥१४॥
जो तरुणियोंके अंगोंको तरह सलवण (लावण्यमय, सौन्दर्यमय ) है, और जिसके किनारोंके लतावन सिंचित हैं, ऐसे समुद्रजलोंमें बारह योजन तक प्रवेश कर और वहीं स्थित होकर अपने लाल-लाल तथा क्रोधसे भरे हुए नेत्रोंसे शुभ भवनको देखकर धनुर्धारी राजाने अपने धनुषको आस्फालित किया। उससे तारा ग्रह और पतंग (सूर्य) आन्दोलित हो उठे। जिसमें बिलोंसे नाग निकल आये हैं, ऐसी धरती चलित हो गयी। अपने बन्धनोंको खींचते हुए और कांपते हुए शरीरवाले सूर्यके घोड़े त्रस्त होकर नष्ट हो गये। पर्वत धरण ( इन्द्र) और वरुण थर्रा उठे। यम, वैश्रवण और यम आशंकित हो उठे। नदी, सरोवर और समुद्रका जल संचालित हो उठा, जिनके आलानस्तम्भ मुड़ गये हैं ऐसे मैगल हाथी भाग गये; पूरवर, परकोटे और घर गिर पड़े। भयसे भ्रान्त-शरीर कायर नर मर गये । श्रेष्ठ वीरोंने अपनी तलवारोंपर दृष्टि डाली। दूसरे कहने लगे कि हा, सृष्टि नष्ट हो गयी। दर्पिष्ठ, दुष्ट ! बाहुबलका मदन करनेवाला, योद्धाओंको डरानेवाला वह भयंकर शब्द ऐसा लगता है कि क्या मन्दराचलका शिखर अपने स्थानसे खिसक गया है ? क्या विश्वको निगलनेके लिए कालने अट्टहास किया है ?
घत्ता-पाताललोकमें नागेन्द्र और धरतोपर नरेन्द्र तथा स्वर्गमें सुरेन्द्र कांप उठे । अत्यन्त गम्भीर धनुषकी डोरीकी टंकारसे किसका हृदय भयाक्रान्त नहीं हुआ? ॥१५॥
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