________________
११. २३.८]
· हिन्दी अनुवाद
२५७
1
घत्ता - आकाश में सात सौ नब्बे योजनकी ऊँचाईपर ज्योतिषदेवोंका वास है । ये मनुष्यलोकके ऊपर विचरण करते हैं ||२१||
२२
इनके आधे कवी ( कपित्थ ) के समान आकारवाले संख्याहीन विमान होते हैं जो पाँच प्रकारकी रंगावलियोंसे विजड़ित और प्रचुरतासे निर्मित एक सौ दस योजनके पटलक्षेत्र में, मनुष्यलोकके बाहर अतल लोकमें स्थित हैं । दूसरे विमान (वैमानिक देवोंके विमान ) लम्बे घण्टोंके आकारवाले तथा असंख्य द्वीपोंमें विस्तारवाले जिनचैत्य हैं । सोधर्मं स्वर्गमें बत्तीस लाख, सुन्दर ईशान स्वर्ग में अट्ठाईस लाख, सनत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग में (जिनमें इन्द्र परिभ्रमण करते हैं ) क्रमशः बारह लाख और आठ लाख, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में सुखपूर्ण चार लाख, लान्तव और कापिष्ठ स्वर्ग में पचास हजार जिन-चेत्यघर हैं। शुक्र और महाशुक्रमें चालीस हजार, शतार और सहस्रार में छह हजार होते हैं; आनत और प्राणत स्वर्गों तथा आरण-अच्युतमें सात सौ कहे जाते हैं ।' अधोग्रैवेयक में एक सौ ग्यारह, मध्य ग्रैवेयकमें एक सौ सात, ऊर्ध्वं ग्रैवेयकमें इक्यानबे, नो अनुदिशोंमें नो और सुखसे निरन्तर भरपूर पांच अनुत्तरोंमें पांच ( चैत्यगृह हैं ) । इस प्रकार चौरासी लाख सन्तानबे हजार तेईस निकेतन हैं। इनको एकीकृत करनेमें विरोध नहीं है ।
धत्ता - बिना किसी प्रकारके कपटके जिन भगवान् कहते हैं कि दोनों स्वर्गोंको ऊँचाई सात सौ योजन है ॥२२॥
२३
ऊपर के दो स्वर्गो की पांच सौ योजन उनसे पहलेके स्वर्गोंकी साढ़े चार सौ योजन उसके ऊपर के विमानोंकी चार सौ योजन ऊँचाई है, जिनमें नाना मणियोंसे स्निग्ध श्रेष्ठ विमान हैं । उनके ऊपर के तीन स्वर्ग साढ़े तीन सौ योजन ऊंचे हैं। उसके ऊपरके विमान तीन सौ योजन ऊँचे देखता हूँ। फिर चार कल्पस्वर्गके विमान शोभासहित अढ़ाई सौ योजन ऊँचे हैं, फिर दो-दो सौ योजन, फिर दोका आधा, सौ योजन, फिर उनकी ऊँचाई पचास योजन है । फिर उसके ऊपर प्रधान विमान पचास योजन ऊपर हैं । सर्वार्थसिद्धिकी चूलिकाको लांघकर बारह योजन जाने१. ब्रह्म ब्रह्मोत्तर ४ लाख ( क्रमशः १९००० + १०४०००), लौकान्तिक और कापिष्ठ ( क्रमशः २५०४२ + २४५८ = ५००० ) शुक्र- महाशुक्र ( २००२० + १९९८० ) शतार और सहस्रार ( ३०११ + २९८१ ) आणत प्राणत आरण और अच्युत ( पहले दो ४४० + अन्तिम दो २६० = ७०० ) ।
३३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org