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________________ २४८ [११. १२.९ महापुराण रैयणसकरप्पह वालुयपह पंकप्पह धूमप्पह तमपह । अवर वि अंतिमिल्ल तमतमपह णिञ्चपउंजियबहुणारयवह । एयउ घणतमजालणिरुद्धउ सत्त णरयधरणीउ पसिद्धउ । घत्ता-पुहईसु बिलाहं होंति सहावभयंकरहं ।। घणतिमिरहराहं अगणियजोयणवित्थरहं ॥१२॥ १३ तीस पुणु वि पणवीस जि लक्खइं पुणु पण्णारह दावियदुक्खई। दह पुणु तिण्णि एक्कु पंचूणउं लक्खु बिलोहं पंच अहिठाणउं । गारइयह तहिं भत्थायरइं दंसिय॑हरिकरिरूववियारइं। महिमयाई परिमउलियवत्तई हेट्ठामुहओलंबियगत्तई। लोहकीलकंटालिकरालई दुग्गंधई दुग्गमतिमिरालई । एसु सुकिण्हणीललेसावस उप्पजंति तिरिय अह माणुस । लेंति देहु सहसत्ति मुहुत्ते वेउव्विउ णिउत्त हुंडत्तें। हवइ विहंगणाणु तहिं मेच्छहं अवहिसहावें जिणमयदच्छह । कालिंगालपुंजसंणिहयर पयडियदंतपंति दठ्ठाहर। विरइयभीमभिउडि रोसुब्भउ कबिलकेस परमारणकक्खड । जिह जिह ते मुणंति अप्पाणउं तिह तिह तं तं संभवठाणउं । दाढाभीसणु मुहुँ णिवायइ अहवा पाउ किं ग किर घायइ । घत्ता-हेट्ठामुह झत्ति ते पडंति असिपत्तवणे ॥ सई अण्णु हणंति अण्णहिं पडिहम्मति रणे ॥१३॥ १४ णउ मज्झत्थु मित्तु उवयारिउ जो जो दीसइ सो सो वइरिउ । खेत्तसहाउ तेत्थु कि भण्णइ जं सुयकेवलिसमु वि ण वण्णइ । सूइणिह तणु दुच्चर भूयलु उण्हु सीउ दुद्धरु चंडाणिलु । जं करेण लेतहुं जि मरिजइ वइतरणीविसु विसु कि पिज्जइ । खंडियकरचरणाणणगत्तई . रुक्खहं खग्गसमाई पत्तई। फलई वजमुट्ठि ब्व कढोरैई वैरि पडंति णिहलियसरीरई । महिहरकुहरहिं विप्फुरियाणण खंति विउठवणाइ पंचाणण । कुहिणिउ जलणजालपज्जलियउ जहिं वच्चइ तहिं खलयणु मिलियउ । ८. MBP रयणप्पह सक्कर वालुप्पह । ९. B°भयंकरइं । १०. MB°वित्थरई । १३.१. Pविलासइं। २. MPT अहठाणउं; B अहिठाणई। ३. M णरइयह; RP णेरइयहिं । ४. B omits this foot. ५. omits this line. ६. P कंटाल । ७. P सुमरइ ठाणउं । ८. P कं ण । ९. MB अण्ण। १४. १. P दुत्तरु। २. MBP जें। ३. MBP कठोरई। ४. M वर; P उवरि । ५. MBP महिकुहरंतरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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