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________________ हिन्दी अनुवाद २ शुभ भूमि कूर्मोन्नत योनियोंमें अर्हन्त, केशव, राम और चक्रवर्ती आदि उत्पन्न होते हैं । और गर्भयोनिके वंशपत्र आकार में शेष प्राकृत मनुष्य उत्पन्न होते हैं। मैंने जान लिया है कि दो इन्द्रिय जीव प्रसन्नतापूर्वक बारह वर्ष तक जीवित रहता है। तीन इन्द्रिय जीव भी रात्रियों सहित उनचास दिन ही जीवित रहता है । चार इन्द्रियोंवाले जोवोंकी आयु छह माहकी होती है । सुनो, पंचेन्द्रियोंकी भी आयु बतायी गयी है । मत्स्यकी एक पूर्वं कोटी वर्ष आयु बतायी गयी है । कमभूमिज तिर्यंचोंकी भी एक करोड़ पूर्व वर्ष आयु होती है । साँप जीवनकी आशावाले बयालीस हजार वर्षं जीते हैं । पक्षी बहत्तर हजार वर्षं जीवित रहते हैं। मनुष्यों और तियंचोंकी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट आयु एक पल्य, दो पल्य और तीन पल्य गिनी गयी है। क्षेत्रकी अपेक्षा कहीं पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंकी यह उत्तम आयु है। मायावी ये कुपात्रदान और आर्तध्यान से भी होते हैं । ११. ३. १४ ] धत्ता - इस प्रकार तियंचोंकी आयु कही । अब मनुष्योंकी आयु कहता हूँ । उनके पन्द्रह, तीस, नब्बे और छह भेदोंको याद करता हूँ ||२|| २३९ ३ लोकके मध्य में तिर्यक् (तिरछा ) रूपमें फैला हुआ और मानुषोत्तर गिरिवलय से विभूषित पैंतालीस लाख योजन विस्तारवाला मनुष्यक्षेत्र है । एक लाख योजन विस्तारका जम्बूद्वीप सबसे श्रेष्ठ है । कुछ अधिक पाँच सौ छब्बीस योजन ( ५२६१६ योजन ) वाले जिसमें मनुष्योंके नगर और नगरियां निर्मित हैं। उसके दक्षिण में भरत क्षेत्र है और उत्तरमें इतने ही विस्तार और आकारका ऐरावत क्षेत्र है । भरत क्षेत्रमें उत्तरसे लेकर दक्षिण तक, गुणोंसे भरपूर पचास योजन चौड़ाईवाला विजयार्धं पर्वत है । उसकी ऊँचाई पच्चीस योजन कही गयी है । हिमवन्त कुलाचल एक हजार बावन ( और १३ ) योजन विस्तारवाला है, ऊंचाई में सौ योजन है, शिखरी पवंत भी इतना है । दूसरा हैमवत क्षेत्र दो हजार एक सौ पाँच, पाँच बटा उन्नीस ( २१०५६ ) योजनवाला कहा जाता है और दूसरा हैरण्य । हिरण्यवत् ) क्षेत्र इसी मानवाला है, दोनोंको एक प्रमाणवाला कहा गया है । महाहिमवत् कुलाचलका विस्तार चार हजार दो सौ दस, दस वटा उन्नीस ४२९०) योजन | ( उसकी ऊँचाई दो सौ योजन ) कहा गया है । रुक्मि कुलाचलका भी मान इसी प्रकार देखा गया है । धत्ता - क्षेत्रसे बड़ा क्षेत्र, और पर्वतसे बड़ा पर्वत है, इसमें भ्रान्ति मत करो। जिनवरका वचन कभी चूक नहीं सकता ( गलत नहीं हो सकता ) || ३ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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