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________________ ९. १९.५] हिन्दी अनुवाद २०५ निरंजन गुणोंका घर है, जो फेंकी गयी धूलिसे लाल है, जो नक्षत्रमालाको ( घण्टावलियों) गीतावलिसे शोभित है, जो एक लाख योजनकी महावृद्धिसे विशाल है, जो महावतों और वीरोंके द्वारा परिवर्धित है, ऐसा वह कल्याणवाला महागज दौड़ा, और वहां पहुंचा जहां इन्द्र विद्यमान था। घत्ता-मदका निझर बहाता हुआ, चमरोंरूपी हंसकुलोंसे सुन्दर वह ऐसा प्रतीत होता है मानो गजके बहाने दूसरा मन्दराचल आया हो ॥१७॥ बत्तीस वरमुखोंसे शोभित गरजता हुआ प्रत्येक मुख-विवरसे निकले आठ-आठ दांतोंवाला। प्रत्येक दांतपर सरोवर । सरोवरमें कमलिनी, कमलिनी वह, जो महालक्ष्मीको सन्तोष देनेवाली थी, कमलिनी-कमलिनीमें कमल थे। तीस और दो, बत्तीस कमल थे जो भ्रमरोंसे सुन्दर थे। कमलिनी-कमलिनी में उतने ही पत्ते थे, जैसे जिनवर लक्ष्मीके नेत्र हों। पत्ते-पत्तेपर एक-एक अप्सरा है। हाव-भाव और रसमें दक्ष वह नृत्य करती है। उस सुन्दर कान्तिवाले गजको देखकर, अप्सराओं और देवोंके साथ इन्द्र उसपर आरूढ़ हो गया। जो इन्द्रके सामानिक देव कहे जाते हैं, ऐसे तैंतीस प्रकारके मन्त्री, पुरोहित, स्पर्शदेव, देवेशकुमार और असिवर धारण करनेवाले आत्मरक्षक और अनीकदेव दुर्गान्तपालोंकी तरह लोकपाल, किल्विष, पाटहिक ( ढोलवादक ), प्रियकारक, अभियोग और कर्मकार देव चले। और भी प्रचुर प्रकीर्षक प्रजाके समान (?) ऋक्ष, चन्द्र, तारा, ग्रह, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, महोरग, किन्नर, किंपुरुष, पिशाच, भूत, गरुड़, दीपकुमार, उदधिकुमार, अग्निवायु, तडित् और स्तनित कुमार, दिक्कुमार, स्वर्णकुमार, नागकुमार और असुरकुमार भी आये। अपने-अपने विमानोंसे आते हुए आकाशमें विमानोंकी रेलपेल मच गयो। पत्ता-गजों द्वारा संघट्टित और सँड़से रगड़ा गया चन्द्रमा मदको कीचड़से लिप्त हो गया, उसे मृगलांछन कहना गलत है ।।१८।। आज भी इसीलिए वह काले अंगसे शोभित है । जिनवरकी यात्राके फलसे कौन मलिन व्यक्ति ऊंचा नहीं होता? कोई कहता है "मृगको पथमें क्यों लाते हो। क्या मेरे आते हुए बाघको नहीं देखते ?" कोई कहता है-"तुम हाथोको प्रेरित मत करो। यह सिंह है, मुँह क्या देखते हो"। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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