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८. २५.४] हिन्दी अनुवाद
१५३ कोलाहलों तथा दूध और जलकी गिरती हुई हजारों धाराओंसे युक्त हजारों स्वर्णकलशोंसे एक हजार आठ लक्षणोंसे युक्त जिनका अभिषेक किया गया। फिर शरीरमें लगे हुए के समान जिनवर स्वामीके योग्य सूक्ष्म वस्त्रका क्या वर्णन किया जाये ? लाया गया और पहना गया वह, शरीरको इस प्रकार सन्तप्त करता है, मानो ज्ञानावरण कर्म हो। दिये गये आभूषणोंको वह स्वीकार नहीं करते, उनकी मोहके बन्धनोंकी तरह उपेक्षा करते हैं, रससे आर्द्र, कामके प्रहरण ( शस्त्र ) पुष्प सन्तको किस प्रकार अच्छे लग सकते हैं। यह काफी है। जिन विलेपनकी सम्भावनाएँ, मलविलेपकी सदृशताके रूपमें करते हैं।
__ घत्ता-चन्द्रमा और सूर्यके समान कान्तिवाले प्रज्वलित प्रदीपोंसे निकलता हुआ धूपके अंगारोंका धुआं ऐसा दिखाई देता है, मानो सुकवि मलपटल विशेषको बांट रहा है ॥२३॥
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दही, दूर्वांकुर और चन्दन, श्वेत सिद्धार्थ (पोला सरसों) और रक्त चन्दनकी वन्दना कर कामदेवका नाश करनेवाले आदरणीय ऋषभ पालकीमें बैठ गये। अब विश्ववन्ध नरेन्द्रोंने सात कदमों तक शिविकाको उठाया। उतने ही कदम भावपूर्वक नमस्कार करते हुए और हंसते हुए विद्याधरोंने उठायो । हो रहा है देवोंका महान् आकुल कुल-कुल शब्द जिसमें ऐसे आकाशमें फिर देवगण उसे ले गये। उसके पीछे-पीछे श्रीसे सेवित मरुदेवीके साथ नाभि राजा चले। कमलके नवदलोंके समान सुन्दर अंगवाली यशोवती और सुनन्दा भी पीछे लग गयीं। मोहसे नवेली दोनों ऐसी लगती थीं मानो कामने दो बरछियां (भल्लियाँ) छोड़ी हों। प्रियके विछोहके शोकसे खेदको प्राप्त होता हुआ, नेत्रोंके अंजनमलसे मैला होता हुआ, श्रेष्ठ कटिसूत्रोंके समूहसे गिरता हुआ, शरीरके प्रस्वेद बिन्दुओंसे आर्द्र होता हुआ, शीघ्र चलता हुआ, स्खलित होता हुआ, शिथिल निःश्वास लेता हुआ, चंचल और बिखरे हुए बालोंवाला, सघन स्तन युगलपर करतल रखता हुआ, गिरनेसे धरतीको कपाता हुआ, पैरोंके संचालनसे नूपुरोंको झंकृत करता हुआ समस्त अन्तःपुर दौड़ा। एक बार परिपूर्ण भावोंवाले देवोंके द्वारा ले जाये गये थे और अभिषेकके बाद प्रासादमें ले आये गये थे। फिर इसी क्रमसे वह आयेंगे और राजा ऋषभ इसी नगरमें रहेंगे।
धत्ता-पौरजनोंने यह कहा और अपने मनमें सोचा कि अब उनका आना कठिन है। जड़, मैले और खराब वस्त्र धारण करनेवाली धरतीरूपी महिला स्वामीके बिना कैसे जीवित रह सकती है ॥२४॥
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जो भरत और बाहुबलिके समान हैं, जिनके मुखसे अश्रुधारा बह रही है, और जिन्होंने हाथी और घोड़ोंको प्रेरित किया है, ऐसे एक कम सौ, अर्थात् निन्यानबे पुत्र चले। जिनेश्वर ऋषभ उस वनमें पहुंचे, "जो आम्र और नालक वृक्षोंसे सघन था, जो अच्छे पत्तोंवाले लक्ष्मी वृक्षोंसे शोभित था, जिसमें विशाल लताजालसे सूर्यकी आभाका पथ रोक दिया गया था। जो
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