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हिन्दी अनुवाद
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किये गये कर्णकटुक आक्रोशवाले, वायु और बादलोंसे उत्कम्पित शरीरसे युक्त मुनियोंके द्वारा शीतोष्ण पर-प्रहारके समूहों, केशलोंच और अचेलकत्वों (दिगम्बरत्व), स्वर्णं और तृण, मित्र और शत्रुमें समचित्तों, विषम परीषहोंके सहन करनेके अभ्यासों, रोगोंसे आक्रान्त खाँसी और श्वासोंके द्वारा, जन्म और मृत्युके प्रबन्धमें प्रवृत्त पुराने कर्मोंका इस प्रकार क्षय किया जाता है ।
घत्ता - जिस प्रकार झरना सूखने और पाल बंध जानेपर रविकी किरणोंसे सरोवर सूख जाता है, उसी प्रकार इन्द्रियोंको नियमित करने और ऋषिके तपका आचरण करनेसे संसार में किया गया कर्म नष्ट हो जाता है ||१६||
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इस प्रकार निर्जरा कर भव रूपी कारागृहको नष्ट कर देते हैं वे नीरोग अजर-अमर श्रेष्ठ सुख प्राप्त करते हैं । जिससे मोक्षरूपी फल प्राप्त किया जाता है वह धर्मरूपी वृक्ष इस प्रकार वर्णित किया जाता है । उसका शरीर क्षमारूपी पृथ्वीतलसे उत्पन्न है । मार्दव उसके पत्ते हैं, आजव उसकी शाखाएँ हैं, सत्य और शौच्य उसकी जड़ है, संयम उसका दल है, वह दो प्रकारके महातप रूपी नवकुसुमोंसे व्याप्त है, जिसका चार प्रकारके त्यागका परिमल प्रसारित हो रहा है और जो भव्य लोकरूपी भ्रमरकुलको प्रसन्न करता है, जिसमें मुनिसमूहके शब्दोंकी कलकल ध्वनि हो रही है, जो सुरवर, विद्याधर और मनुष्योंको शतशुभ फल देनेवाला है, दीन और अनाथोंके दीघं श्रमका निग्रह करनेवाला है, जो शुद्ध, सौम्य और शरीर मात्रका परिग्रह रखनेवाला है, जो ब्रह्मचर्यं की छाया ( कान्ति ) से शोभित है, राजहंसोंके समूहसे समादृत है । इस धर्मरूपी वृक्षको देखना चाहिए और जीवदयारूपी वृति ( बागड़ ) के द्वारा रक्षा करनी चाहिए। उसे ध्यानरूपी स्थाणुका सहारा देना चाहिए, मिथ्यात्वरूपी पशुओं को उसके पास प्रवेश नहीं देना चाहिए, शोलरूपी जलकी धारासे उसका सिंचन करना चाहिए। इस प्रकार प्रयत्नपूर्वक उसे बढ़ाना चाहिए ।
घत्ता - क्रोधरूपी ज्वालासे बचनेपर यह धर्मरूपी वृक्ष शीघ्र बड़ा हो जाता है, जिनकी रचना ऋषीन्द्रोंने की है, जगमें उन अत्यन्त मीठे फलोंको यह शुभंकर धर्मरूपी महावृक्ष देता है ||१७||
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मैं जन्म-जन्म में जहाँ होऊँ, वहां नये-नये शरीरमें लाखों दुःखों का नाश करनेवाले जिनशासनकी भक्ति हो । धूर्तों के सिद्धान्तोंसे पराङ्मुख चित्त जन्म-जन्म में जिनागमके सम्मुख हो । पंचेन्द्रिय प्रतिशत्रुओं का बल नष्ट हो, जन्म-जन्ममें विमल बुद्धि उत्पन्न हो, विषयकषाय और राग भावसे परित्यक्त तीन गुप्तियां जन्म-जन्ममें हों । जन्म-जन्ममें आशापाशका बन्धन टूटे और मोहजाल
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