________________
१३६
महापुराण
[७.८.९ गाइ चउप्पय तणयरि जेही सूयरि हरिणि वि रोहिणि तेही । हा हा बंभणेण माराविय
रायह रायवित्ति दरिसाविय। पियरपक्खु पञ्चक्खु णिरिक्खइ मंसखंडु दियपंडिय भक्खइ। धोयंतउ दुद्ध पक्खालउ
होइ कहिं मि इंगालू ण धवलउ। एहु देहु किं सलिलें धुप्पइ हिंसारंभ डंभे लिप्पइ। अण्णपणे रंगे रंगिजइ
परमागमरसेण णउ भिज्जइ । मूढु जिणिदसेव कहिं पावइ सवणु गहणु धरणु वि ग विहावइ । पत्ता-मायारउ मण्णइ मुणि अवगण्णइ जीवहिंस पडिवज्जइ ॥
माणुसु वि हवेप्पिणु पाउ करेप्पिणु पुणु संसारि णिमन्जइ ।।८।।
खंडयं-ईसिणिउंचिय जोवणं कामकोहतवभावणं ।
काउं सेवइ जो वणं । सो पावइ तं भावणं ॥१॥ अवरु वि जायउ उववणठाणइ जोइसकप्पणिवास विमाणइ । वाहणु वेयालिउ छत्तियधरु वाइत्तयवायउ सब्भेयरु । णचणु गायणु सुईसुहदावउ अण्णु वि होइ असम्मयभावउ । णवर मरंतु संतु उग्विजइ वेवइ चलँइ घुलइ परिखिजइ । हा कप्पदुम हा माणससर हा णीहारहारसंणिहधर । हा अच्छरउलमणसंमोहण
हा परियणपडिवक्खणिरोहण । हर्यवलिपलियरोयसयसंचय हा हा दिव्वदेह हा णववय । हालंकारसार सहसंभव
हा गंधार महुर वीणारव । हा देवंगवत्थ णिच्चुजल
हा मंदारदाम चल सभसल । घत्ता-सम्मत्तविमुक्कहु जिणपयचुक्कहु अवसे हियउ ण सुज्झइ ।।
सग्गग्गु मुयंतहु पलयहु जंतहु कासु सरीरु ण डज्झइ ॥९॥
खंडयं-सुललियमइलियचेलयं
भोयविरोयणिबंधयं सयलजिणाहिसेयधुयमंदर हा हे कुलिसपाणि जगसुंदर
अइओहुल्लियमालयं । जायं मह खयचिंधयं ॥१॥ __ धूवधूमधूवियगिरिकंदर ।
ण रक्खिउ देव पुरंदर।
६. MBP हरिणी रोहिणि । ७. MBP दिउ पंडिउ। ८. MBP हिंसारंभि डंभि तो लिप्पइ ।
९. M विभावइ । ९. १. MT इसी and gloss मुनिर्भूत्वा; P इसि । २. MP सुदूसहदावउ । ३. MBP बलइ ।
४. MBP हा वलि । ५. MBP संचुय but gloss in P देह । ६. सोलंकार । ७. MB कासु ण
हियवउ; P कासु वि हियउ ण । १०. १. MBP विराय ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org