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७.८.८] हिन्दी अनुवाद
१३५ प्रकारके बन्धन, छेदन-भेदन-ताड़न, त्रासन-उत्कर्तन, शरीरका विध्वस्त होना, तीर और पत्थरोंसे संघर्षण, लोटना, घूमना-फिरना, दलन, मला जाना, मसला जाना, सताया जाना, पीड़ित होना, काटा जाना, फाड़ा जाना, मारा जाना, क्षुधा-तृष्णाके दुःखोंका सन्ताप और भारसे आरूढ़ होकर देश-पुर-गांवमें जाना, इस प्रकार लाखों दुःखोंको सहनकर जीव किसी प्रकार तिर्यक् गति छोड़कर
पत्ता-अपने कर्मके वशीभूत भील, पारसीक (पारसी(?)), बर्बर, सिंहल, हूण और चीनका निवासी होता है, मनुष्यकी भाषा नहीं जाननेवाला वह आर्यकुल नहीं पाता ॥६॥
म्लेच्छ भी अपना हित नहीं करता और वह अलंध्य दुष्कृत करता है, तथा दुःखोंके आवर्तसे भयंकर नरकरूपी समुद्र में पड़ता है। उसके बाद यद्यपि वह अविकल अत्यन्त पवित्र कुल पाता है और मनके द्वारा चाहे गये कुछ सम्पत्तिके फलको पाता है, तब भी गुणवानोंकी संगति प्राप्त नहीं करता। कुगुरु, कुदेव और कुमार्गमें मुग्ध होता है, जिनवरके वचनोंको कदापि नहीं समझता। मूखों और धूर्तोंके द्वारा कहे गये पशुवधधर्म और किसी भी कुत्सित कर्ममें लग जाता है, लोभी और मुग्ध वह चण्डिकाका बहाना बनाकर मद्य पीता है और सरस मांस खाता है। यम, पशुबलि देनेवालोंको क्षमा नहीं करता, मारनेवाला मारकर फिर पशु होता है। जो चिल्लाते हुए पशुओंका सिरकमल काटता है, वह भी दूसरोंके द्वारा वहां मारा जाता है। पहलेका संचित कर्म आगे दौड़ता है जो जैसा करता है वह वैसा ही पाता है।
पत्ता-पशु मारकर खाया जाता है, सुराका पान किया जाता है और यदि इस कर्मसे भी स्वर्ग-मोक्ष पाया जाता है, तो फिर धर्मसे क्या ? शिकारीको हो सेवा करनी चाहिए ॥७॥
आगमें होमे गये बकरे ( अज) स्वर्ग और मोक्ष गये हैं और देव हुए हैं, यदि ब्राह्मणोंका सिद्धान्त यह है, तो वेदोंमें कथित मन्त्रोंके द्वारा वह प्राणायाम आदि क्यों करता है ? अपनेको क्यों नहीं होम देता ? श्रोत्रिय स्वर्ग और मोक्ष क्यों नहीं चाहता, खोटे शरीरसे बंधा हुआ क्यों रहता है ? अपना पुत्र मरनेपर धाड़ मारकर रोता है, वंचक वह अज और उसके बच्चेका वध करता है, बेचारी गाय ताड़ित की जाती है, रोकी जाती है, बांधी जाती है, बछड़ेको रोककर अन्यके द्वारा दुही जाती है, मल खाती है। बुद्धिहीन और बेचारी पापके फलसे गाय हुई है, परन्तु देवी कहकर लोगोंसे उसकी व्याख्या करता है; धूर्तजन सीधे-सादे लोगोंको ठगना जानता है।
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