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________________ ६.९.१५] हिन्दी अनुवाद १२७ निवास करनेवाली श्री आहत हो गयी हो, मानो नाट्यरूपी सरोवरको कमलिनोको कालरूपी सर्पने काट लिये, मानो चन्द्रलेखा आकाशमें अस्त हो गयी; मानो इन्द्रधनुषको शोभाको हवाने शान्त कर दिया हो । न तो स्तन, न नृत्यगुण, न मुख और न संचित काम विपुल रमण, न केशभार, और न हारलता। मैं नहीं जानता सुन्दरी कहाँ गयो। नीलमणियोंसे विजड़ित आंगन सूना है, मानो बिजलीसे रहित मेघपटल हो। इन्द्रको रमणी मर गयी। यह देखकर उन्हें कुतूहल हुआ। हा-हा कहते हुए वह शोकग्रस्त हो गये । समूचा दरबार विस्मयमें पड़ गया। घत्ता-उस मृत्यु और करुणासे काँपते हुए भरतके पिता विस्मयसे भर उठे। कुसुमके समान दांतोंवाले और रतिसे मुक्त त्रिजगगुरु चुप हो गये ॥९॥ इस प्रकार ब्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभब्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका निलंजसा-विनाश नामक छठा परिच्छेद समाप्त हुआ ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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