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६. ९.५]
हिन्दी अनुवाद
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और दो विभाषारागों सहित पंचम रागका प्रदर्शन किया गया। समस्त विश्वकी स्त्रियोंको बाधित और मोहित करनेवाला हिन्दोलराग चार भाषारागोंका घर है । मालव – कैशिक राग छह जातियों में कहा जाता है और वह दो भाषारागोंमें अंकित है । शुद्ध षड्ज सात जातियोंमें रचा जाता है ।
घत्ता - इस प्रकार सरस सुविभास रागोंके द्वारा विधिपूर्वक कानोंको लीन करनेवाला वह ( गान ) गाया गया कि जिसमें सीमित परिमाणवाली सुन्दर क्रियाएँ दिखायी गयीं ||७||
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दसमें चारका गुणा करनेपर चालीस भाषारागोंकी संख्या जाननी चाहिए । विभाषाराग छह कहे गये हैं । विद्वानोंके मनका रंजन करनेवाली, ग्यारह और दस, इस प्रकार कुल इक्कीस मूर्च्छनाएँ कही गयी हैं । जहाँ उनचास तानें कही जाती हैं, वहाँ में गीतारम्भका क्या वर्णन करूँ । उनके संयोगों से विभिन्न रसोंकी उत्पत्ति होती है । इस प्रकार विमल यशवाली नीलांजना नृत्य प्रारम्भ करती है । बताओ वह किसकी दृष्टिको आकर्षित नहीं करती ? नाचती हुई वह लोगों के हृदयका अपहरण कर लेती है। उसने तेरह प्रकारसे सिरको नचाया । छत्तीस प्रकारसे दृष्टिका संचालन किया, रागको पोषित करनेवाले नौ तारकों और आठों दर्शनगतियोंकी रचना की । फिर उसने तैंतीस भावोंका प्रदर्शन किया। और फिर नौ नन्दोंका प्रदर्शन किया । हृदयका हरण करनेवाला सात प्रकारका भ्रूसंचालन, छह प्रकारका नाक कपोल और अधरोंका संचालन, सात प्रकारका चिबुक और चार प्रकारका मुखराग, नौ प्रकारका कण्ठ और चौंसठ प्रकारके हस्तके भेदों का प्रदर्शन किया। सोलह, तीन और चार प्रकारके करण मार्ग और दस प्रकारके भुज-मार्ग बताये । उनके पाँच प्रकारों, पार्श्वयुगलके तीन प्रकारों और उदरके तीन प्रकारोंको प्रकट किया । कटितल, जांघों और चरण-कमलोंका प्रदर्शन भी उनके अपने भेदोंके साथ किया । इस प्रकार चंचल बत्तीस अंगहारोंके साथ एक सौ आठ कारणोंका प्रदर्शन उसने किया। चार प्रकारका रेचक, सत्तरह प्रकारके पिण्डीबन्धोंका, कि जो नटराजके कीर्तिध्वज हैं, प्रदर्शन किया । इन्द्रियोंको जीतनेवाले गणधरोंके द्वारा बतायी गयी बत्तीस प्रकारकी चारियोंका नृत्य किया । उसने बीस प्रकारके मण्डल और तीन संस्थानोंका सुन्दर प्रदर्शन किया ।
घत्ता - - धृति आदि संचारी भावों, स्थायी भावों, अनेक भाषाओं और जातियों, नाना भेदोंके प्रदर्शक नवरसोंसे नीलांजना नृत्य करती है ॥८॥
शीघ्र ही हर्षको विगलित करनेवाले नवम रस ( शान्त रस ) को वह धारण करती है, और ऋषभजिन उसे मरती हुई देखते हैं । जिननाथने उस नीलांजनाको देखा, उन्हें लगा मानो सौन्दर्यकी नदी सूख गयी हो, मानो क्षण-भर में रतिकी नगरी नष्ट हो गयी हो, मानो जननेत्रों में
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