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६.७.९]
हिन्दी अनुवाद
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विरतिके नाशक, मनुष्योंके द्वारा प्रशंसित बांसके सुषिर वाद्यसे स्वर उत्पन्न हुआ। जिसके ध्वनित होनेपर शाश्वत श्रुतियां (बाईस श्रुतियां षड्ज और मध्यम ग्रामोंमें से प्रत्येककी बाईस) मुक्त अंगुलीसे आठ श्रुतियाँ, कांपती अंगुलीसे तीन श्रुतियां उत्पन्न हुई और मुक्त अंगुलीसे दो श्रुतियां । व्यक्त अंगुलोके छोड़नेके कारण षड्जके साथ मध्यम और पंचम स्वर तथा सामान्य स्वरोंकी संज्ञाके समान काँपती हुई अंगुलीसे धैवत, गान्धार और विषाद स्वरोंसे संचालित, अर्धमुक्त ध्वनियाँ अंगुलियोंके द्वारा नाना आदरवाले, तुम्बरु और नारदके समान देवोंने ठीक की गयी वीणाको उस प्रकार प्रकट किया जिस प्रकार आगममें बताया गया है। दो प्रकारके वीणावाद्यों (विष्कल और त्रिपंच) घन वाद्यों ( कांस्यतालादि ) के द्वारा अनेक तालोंका एक साथ वादन हुआ। जिन भगवान्का मनमें सम्मान करनेवाले महादरणीय देवोंने गीत प्रारम्भ किया। नाभिस्थानमें उत्पन्न हुई वायु उरःस्थानमें क्रमशः नाद बनकर, कर्णस्थानमें बाईस श्रुतियां बनाती हैं, और क्रमसे रचित प्रमाणोंके द्वारा ( अर्थात् क्रमसे सात स्वरोंका उच्चारण करनेपर ) बढ़ता हुआ नाद वृद्धिको प्राप्त होता है। इन बाईस श्रुतियोंमें सा रे ग म प ध नि नामक सात स्वर और दोनों ग्राम कहे ( इनमें षड्ज ग्राम और मध्यम ग्राम हैं )।
पत्ता-देवोंके द्वारा पूजित षड्जमें किन्नरोंके द्वारा सात जातियां कही गयी हैं। और मध्यम ग्राममें लोगोंके कानोंको सुख देनेवाली ग्यारह जातियां कही गयी हैं। (इस प्रकार कुल अठारह जातियां होती हैं।)
सात और ग्यारह, इस प्रकार अट्ठारह जातियोंमें निबद्ध और लक्ष्य विशुद्ध अंगोंके एक सौ चालीस भेद होते हैं, उनका भी प्रदर्शन किया गया। उनमें कानोंको सुखद लगनेवाली पांच प्रकारको गीतियां होती हैं, जो शुद्धा, भिन्ना, वेसरा, गौड़ी और साधारणाके रूपमें जानी जाती हैं. इनमें और भी ग्राम राग कहे गये हैं। सात. पांच. आठ, तीन और सातकी संख्यासे गिने जाते हैं इस प्रकार क्रमशः तीस भेदोंका संग्रह किया। ये छह राग मानवोंके कानोंको सुख देनेवाले हैं, इनमें पहला राग टक्क राग कहा गया है, जो बारह भाषारागोंसे सहित है। आठ भाषारागों
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