SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्धि ६ दूसरे दिन अपने भवनमें, सुरवरोंसे संस्तुत, सम्पत्तिका विधाता, नागों और दानवों तथा मनुष्योंके द्वारा सेवित आदरणीय ऋषभ दरबारमें स्थित थे। स्वर्णनिर्मित मणिसमूहसे विजड़ित, प्रभासे भास्वर सिंहासनके आसनपर आसीन परमप्रभु ऋषभका हमारे द्वारा क्या वर्णन किया जाये? गादीके आसन, विचित्र चमकते हुए वेत्रासन, रत्नोंसे जडित लोहासन और दण्डोंसे उन्नत दण्डासन दे दिये गये। एकसे एक प्रमख राजा क्षण भरमें इकट्ठे हो गये, और बहुत-से माण्डलीक राजा वहां आकर बैठ गये । कोई राजा केशरसे चर्चित है मानो लक्ष्मीरूपी कामिनीके अनुरागसे अधिगृहीत है। कोई राजा चन्दनसे धूसरित सफेद दिखाई देता है मानो अपने ही यशसे भरा हुआ हो। कस्तूरीसे विलिप्त कोई राजा ऐसा जान पड़ता है कि जैसे सूर्य और चन्द्रमाके डरसे अन्धकारको धारण कर रहा है। किसी राजापर हारावली इस प्रकार व्याप्त है, मानो काले बादलमें बिजली हो। किसीपर चंचल चमर पड़ रहे हैं, जो ऐसे लगते हैं मानो कीर्तिरूपी कमलिनीके दल हों। उस दरबारमें कपूरकी प्रचुर धूल उड़ रही है, जिसमें मधुकर गुनगुनाता हुआ मंडरा रहा है। किसीने आते हुए उसे हटा दिया और पानके लिए अपना हाथ फैलाया। ___घत्ता-जहां विद्याधर स्वामियों, कामना रखनेवाले समस्त देवरूपी बन्दियों, तथा प्रणाम करते हुए रतिसमूहों (?) और मणि-किरणोंमें विरोध है (??) ॥१॥ जहाँ प्रणयसे प्रसन्न शृंगार धारण करनेवाला स्त्रीसमूह बैठा हुआ है। जहां यष्टि धारण करनेवाले भक्तिनिष्ठ श्रेष्ठ प्रतिहारी मनुष्य लोगोंका नियन्त्रण करते हैं। राजाके सामने थूकना, जंभाई लेना और हंसना सेवाका दूषण माना जाता है। पैर हिलाना, तिरछा देखना, हकारना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy