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________________ ५. ३. १४ ] हिन्दी अनुवाद २. वह बोली-हे पुरुषश्रेष्ठ, सुनिए। मैंने रात्रिमें स्वप्नमें सुमेर पर्वत, चन्द्रमा, सूर्य, सरोवर, समुद्र और निगली जाती हुई धरती को, हे स्वामी, देखा है। यह सुनकर राजा घोषणा करते हैं, "तुम्हारा चक्रवर्ती पुत्र होगा, मन्दराचलको देखनेसे प्रियकारक महान् महाराजाधिराज होगा। चन्द्रमाको देखनेसे सुभग और सौम्य मुखवाला, कान्ताका सुख माननेवाला और कान्तिसे युक्त होगा। सूर्यको देखनेसे शूरवीर और अपने प्रतापसे असह्य होगा। सरोवरको देखनेसे उसका स्पष्ट लक्ष्मीसंग्रह होगा। समुद्र देखनेसे वह अपने वंशका सूर्य होगा, प्रचण्ड सुन्दर और चौदह रत्नोंका आश्रय । पृथ्वीका अहार देखनेसे वह शत्रुका नाश करेगा और छह खण्ड धरतीका भोग करेगा। कुछ ही दिनोंमें हे देवी तुम्हारा पुत्र होगा, जो कुछ मैंने कहा है वह चूक नहीं सकता।" तब सर्वार्थसिद्धि नामक अपने विमानसे चलकर पूर्वपुण्यको सम्पत्तिसे भरपूर अहमिन्द्र स्वयं यशोवती देवीके गर्भ में आकर स्थित हो गया। पत्ता-भुवनका उत्कर्ष है जिसमें ऐसे पुत्रका जन्म होनेपर जिन्होंने अपना मुंह काला कर लिया, ऐसे दुर्जन और स्तन अपना मुख नीचा करके गिर गये ॥२॥ पुत्रके भारके प्रसारसे क्षीण उदरकी त्रिबलि समाप्त हो गयी। मानो तीनों लोकोंको त्रिभुवनपतिकी विजयकी चिह्नरेखासे रहित कर दिया गया हो। यह नहीं जाना जा सका कि गर्भमें स्थित रागसे उसका मुख सफेद क्यों हो गया ? प्रशस्त दिन, निर्मल मुहूर्त और ग्रहोंके अपने-अपने स्थानपर स्थित होनेपर नौ माहमें यशोवतीके विकसित मुखवाला सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ। तब आकाशमें देवोंको दुन्दुभि बज उठती है मानो सन्तोषसे सागर गरजने लगता है, मानो (लोगोंके) दान देनेपर हाथी वनमें चले जाते हैं, मनुष्य हर्षसे क्यों उत्कण्ठित नहीं होते। मेघ सुगन्धित जल बरसाते हैं, दिआओंके मुख अत्यन्त निर्मल हो जाते हैं, आकाश भी मलसे रहित दिखाई देता है मानो नोले वर्तनको माजकर खूब साफ कर दिया गया हो, या मानो मन्दराचलके दण्डपर आधारित एकछत्र कुमारके ऊपर रख दिया गया है। "ताराओंके समान मोतियोंसे विभूषित यह राजा सबसे श्रेष्ठ है," मानो धरती चारों ओर महानदियोंके घोषोंसे कलकल करती हुई और दुष्टोंको हटाती हुई यही कहती है। पत्ता-सरोवरके कमलोंरूपी नेत्रोंसे तुम्हें देखती हुई (धरती ) मुझे (कविको). अच्छी लगती है, हवाओंसे चंचल और आन्दोलित लतारूपी बाहुओंसे मानो वह नृत्य करती है ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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