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________________ सन्धि ५ प्रियसे मिलाप करानेवाले समयके बीतनेपर एक दिन, अनुपम सती शुभकारिणी, ऋषभनाथकी अत्यन्त प्रिय, गजगामिनी, स्वच्छ कमल-समूहके समान कोमल शरीरवाली, पूर्णिमाके चन्द्रमाके समान शीतल शयनतलमें, अपने यशसे अत्यधिक शोभित यशोवती इस प्रकार सो रही थी, मानो नवकमलोंपर हंसिनी सो रही हो । स्वप्नमें उसने एक शैलराज देखा, जिसके तट देवबालाओंके पैरोंके आलक्तकसे आरक्त थे, जिसकी घाटियोंके रन्ध्रोंसे गम्भीररूपसे जल गिर रहा था, जिसके शिखर सिंहों और श्वापदोंकी गर्जनाओंसे निनादित थे, अपने चन्द्रकान्त मणियोंकी आभासे जिसने सूर्यबिम्बको जीत लिया था। जिसने हाथीदांतोंसे स्वर्णरागको निस्तेज कर दिया था। (फिर उसने देखा) निशाके अलंकारभूत चन्द्रमाको, पूर्वदिशासे निकलते हुए सूर्यको, भ्रमरोंसे गूंजते हुए कमलोंसे युक्त और अद्वितीय परागसे पीले सरोवर को, जो अत्यन्त वेगशील लहरोंसे दशों दिशाओंमें चंचल है, जो जलोंके स्खलनसे गिरिशिखरोंका प्रक्षालन करनेवाला है, जिसमें अमर्षसे भरे हुए मत्स्योंका उत्फाल शब्द उठ रहा है, ऐसे मत्स्यों और मगरोंसे भयंकर समुद्रको उसने देखा । समस्त धरतीतलको अपने मुखरूपी कमलमें प्रवेश करते हुए देखा। घत्ता-यह देखकर इन्द्राणियोंमें श्रेष्ठ वह सोमन्तिनी प्रेम करनेवाले अपने स्वामीके भवनमें सवेरे-सवेरे यह पूछनेके लिए गयो ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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