SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. १९.१६ ] हिन्दी अनुवाद पत्ता-अरुण किरणमालासे स्फुरित सूर्यबिम्ब अपनी दिवसश्रीके साथ ऐसा उदित हुआ, जैसे उदयाचलरूपी महाराजपर नवरक्त छत्र रख दिया गया हो ॥१८॥ जो ( कमलिनी ) चन्द्रकी किरणों (पादों = पैरों किरणों) से आहत होकर दुःखको प्राप्त हुई थी, भ्रमरोंके शब्दोंसे गुंजित ऐसी कमलिनी जैसे रो उठती है, और अपने प्रचुर ओसरूपी आँसुओंको दिखाती है, अन्धकारका हरण करनेवाला सूर्य मानो उसके आंसुओंको पोंछता है। जम्बूद्वीपमें आलोकित वह (सूर्य) ऐसा शोभित होता है मानो आकाश और धरतीरूपी शरावपुटमें दीप रख दिया गया हो । मानो अधखुला लोकनेत्र हो, मानो आते हुए शेषनागके सिरका रत्न हो, मानो आकाशरूपी सागरकी वडवाग्नि हो, मानो दिशारूपी राक्षसीके मुंहका कौर हो, या मानो उस ( दिशारूपी राक्षसी) का अधरबिम्ब हो। मानो निशारूपी वधूका आरक्त पदमार्ग हो, मानो दिवसरूपी वृक्षका अंकुर निकल आया हो, मानो विश्वरूपी पिटारेमें प्रवाल रख दिया गया हो। ऐसे उस महोत्सवमें किसीको विश्वश्रेष्ठ कटिसूत्र, दोर (डोर ) हार, किसीको हृदयगत सुन्दर वस्त्र, किसीको धनधान्य, सुवर्ण और अन्न जिसने जो मांगा, उसे वह दिया गया। कानीनों और दीनोंका दारिद्रय दूर कर दिया गया। सुधीपरिजनोंका सम्मान किया गया। चौथे दिन कंगन छोड़ दिया गया। वैभवके साथ अच्छी तरह विवाह हो जानेपर स्वामी न्यायके साथ राज्य करने लगे। घत्ता-यशोवती और सुनन्दा रानियोंके द्वारा प्रणय और हृदयसे चाहे गये श्वेतपुष्प ( जुही ) के समान वह ऋषभ, भरतक्षेत्रके राजाओंके द्वारा सेवित हुए ।।१९।। इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषोंके गुणालंकारोंसे युक्त इस महापुराणमें महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित तथा महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्यका कुमारीविवाह कल्याण नामका चौथा परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy