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महापुराण
[४.१६.१५ घत्ता-वरतारातंदुल घिविवि सिरि ससि परिवद टुलु रइणिलउ । दिसिरमणिइ णिसिहि वयंसियहि णावइ दहिएं कउ तिलउ ॥१६।।
१७ जंभेट्टिया-ससहरकंतिइ दिसि पसरंतिइ।
___सोहइ लोयउ दुद्धं, व धोयउ ॥१॥ ता णिसि पेक्खणउ विलासवंतु पारद्ध, झसद्धयरिद्धि देतु। आउज्जहुँ जेण मुहेण वासु
सा पुग्विल्लीदिसमंडवासु । ताहाहिणि उत्तरैमुहणिविठु गावणु बतुंरु देवेहि दिट्छु । तहु संमुहियउ मउगाइयाउ उवइट्टउ सरसइआइयाउ । तहु दाहिणेण संठियउ सुसिरु तव्वामएसि वेणइयणियरु। इय एहउ अर्वणिणिवेसु गणित पञ्चाहारु वि सो चेव भणिउ । वजई मजिवि साहारणाइ
कम्मारवी य संमज्जणाइ। सहसा सुइसोक्खुल्लोलएण उहिक्खणु किउ हिंदोलएण । थिरवण्णछडयधाराविसेसु कउँ णञ्चणीहिं पुणु तहिं पवेसु । उठवसिरंभाणामालियाहिं
आहल्लामेणइवालियाहिं । घत्ता-आमेल्लियणवकुसुमंजलिहिं देविहिं रंगि पइट्ठियहिं ।। मोहिउ जणु मग्गणमोयणिहिं णं वम्महधणुलट्ठियहिं ॥१७॥
१८ जंभेट्टिया-अहिणयकोच्छरो । मुवैणिहियच्छरो।
पच्चइ सुरवई डोल्लइ वसुमई ॥१॥ विरइय णडेहिं णाणावियार चारी बत्तीस वि अंगहार । अण्णण्णदेहपरिठवणभिण्णु करणहं अट्ठोत्तरु सउ वि दिण्णु । चोइँह वि सीससंचालणाई भूतंडवाइं रंजियमणाई। णव गीर्वउ णयणसुहावियाउ छत्तीस वि दिहिउँ दावियाउ । अंतिमरसविरहिय जणियहाव अट्ठ वि रस सच्चेयणसहाव । एके ऊणा पण्णास भाव
अवर वि अउँव्य भावाणुभाव । फुरणइं वर्लंणइं अणिवारियाई णञ्चंतहि तहि अवयोरियाई। पुणु पत्तई वंदियपयरयाई 1°छंडणयपओएं णिग्गयाइं । मुद्धइं पेम्मंधइं रूसवंतु
णिण्णेहई मिहुणइं"तूसवंतु । तारातारावइरुइ हरंतु
"विहडियचक्कउलई मेलवंतु । ९. MP दिसरमणिइ। १७. १. M दुद्ध; BP दुद्धि । २. दिसि । ३. MBP उत्तरमुहु। ४. MBP कहव । ५. MBP किउ ।
६. B रंग। १८. १. MBPT अहिणव । २. KT भुयं । ३. MB चउदह । ४. BP गीयउ । ५. MBP दिट्टउ ।
६. MBPT भाव । ७. P अपुव्व । ८. M करणई। ९. MKT अवधारियाई। १०. MB छहुणयपओएं; PT छड्डणयपओएं। ११. MBP रूसवंतु । १२. BP विहडियचक्कउ ।
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