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३. १७.७]
हिन्दी अनुवाद
निर्मलको भी स्नान कराया गया। मंगलका भी मंगल गाया गया। संवरको जाननेवाले दिगम्बर परमेष्ठीको अम्बर वस्त्र क्यों दिया गया ? जो भूषणस्वरूप हैं उन्हें भूषण क्यों पहनाया गया, जो जगमण्डन हैं उनपर मण्डन क्यों किया गया ? संसारके ऋणसे मुक्त जिनके दोनों कानोंको वज्रसूचीसे बेधकर मणिमय कुण्डल पहना दिये गये, मानो चन्द्र और दिनकरके मण्डल हों, जो मानो चंचल राहुसे भागकर नाभेयकी शरणमें आये हों। विश्वश्रेष्ठ सुन्दर ऋषभके सिरपर इन्द्रने मुकुट क्यों बांध दिया ? गलेकी रेखासे जीता गया, झुका हुआ अधोमुख आन्दोलित हारके द्वारा हृदयकी सेवा की गयी, जो जड़जात (जड़से उत्पन्न, और जलसे उत्पन्न मोती) को कुछ भी अच्छा नहीं लगा।
पत्ता-जो स्वयं सालंकार हैं, देवता उसे अलंकार क्यों पहनाते हैं, मेरे हृदयमें भ्रान्ति है कि उन्हें शर्म नहीं है, वे रूपको क्यों ढकते हैं ।।१५।।
१६ क्या देवोंको बुद्धि नहीं उपजी कि उन्होंने कंकणोंका महाघ मणिबन्ध और कटिसूत्र कटितलमें बांध दिया। किकिणीका स्वर रोमांचित होकर कहता है क्या सिंहके नितम्बमें यह शोभा है ? लो यही कारण है कि वह पहाड़की सेवा करता हुआ वहीं रहता है। दोनों चरणोंमें झन-झन करते हुए नूपुरोंका जोड़ा यह कहता है कि जो भव्यजीवोंकी परम्पराके लिए शरणस्वरूप हैं, जो संसाररूपी महासमुद्रसे तारनेवाले हैं, जो कोमल स्वरों और अंगुलियोंके दल कमलवाले हैं, और (ज्ञान रूपी) सर्यके प्रसारसे तिमिरमलको नष्ट कर देते हैं. मैंने ऐसे जिनवरके चरणयगलको पा लिया है, मेरा भूषण होना सफल हो गया। बनाये जाते समय मुझे जो आगमें तपाया गया, मानो विधाताके द्वारा दिखाया गया, यही मेरे तपका फल है।
पत्ता-स्नान करानेवाला क्षीरसमुद्रका जल अपने स्वामीका वियोग सहन नहीं करता इसीलिए मन्दराचलसे गुह्य वृक्षोंके मध्यमें अपनेको डाल देता है ॥१६॥
देवोंने दूरसे बहते हुए उसे देखा और अपने सिरसे उसे अंगीकार कर लिया। जिनके शरीरसे लुढ़का हुआ और कठोर गुफाओंमें गिरनेसे दुःखित उसे देवोंने हाथों हाथ ले लिया। गुरुके साथ कौन गुरु नहीं होता। कमलपरागकी धूलसे धूसरित केशरको लालिमासे पीला, वनगजोंके गण्डस्थलोंसे पतित, गजकपोलोंसे झरते हुए मदजलसे सुगन्धित, चलते हुए भ्रमरोंसे चित्रित नाना मणि-किरणोंसे मिश्रित स्नानजल ऐसा लगता है मानो सुमेरु पर्वका पचरंगा दुपट्टा उड़ रहा
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