SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ २.७.१५] हिन्दी अनुवाद पत्ता-वह मुग्धा सपनोंको देखकर जाग उठी, और स्वप्नोंमें उसने जिस प्रकार जो देखा था, लाल-लाल किरणोंवाला सवेरा होनेपर, उसने उसी प्रकार राजासे कहा ॥५॥ तब राजा नारियोंमें श्रेष्ठ आदरणीय मरुदेवीसे कहते हैं, "गजेन्द्र देखनेसे तुम्हारा पुत्र, देवोंसे प्रणतपद और गुरुओंका गुरु होगा। गोनाथ (बैल) देखनेसे पृथ्वो धारण करेगा। सिंह देखनेसे वह पराक्रमका विस्तार करेगा, लक्ष्मी देखनेसे त्रिभुवनको लक्ष्मी धारण करेगा, पुष्पमाला देखनेसे उसे पुरुष श्रेष्ठ समझो, और जो तुमने चन्द्रमा देखा है, उससे वह इन्द्रके द्वारा की गयी अर्चा प्राप्त करेगा, जो तुमने सूर्य देखा है, उससे तुम्हारा पुत्र जनमनोंके लिए सुन्दर, मोहान्धकारका विनाश करनेवाला और भव्यजनरूपी कमलवनके लिए दिवाकर होगा; मीनयुग्म देखनेसे सुखनिधि होगा, और घड़ोंको देखनेसे देवता उसका अभिषेक करेंगे। दोनों समुद्र और सरोवर देखनेसे वह त्रिभवनमें गुणवान् और गम्भीर होगा। सिंहासन देखनेसे दर्शनसे विशुद्धमति वह पांचवीं गति ( मोक्ष ) प्राप्त करेगा। देवों और नागोंके घरोंको देखनेसे देव और नाग उसकी सेवा करेंगे। रत्नोंका समूह देखनेसे वह जिन-सम्पत्तिका फल प्राप्त करेगा, और ( तपकी) आगमें कर्ममलको जलायेगा। । घत्ता-आज मैं निर्दोष कर्मफल कहता हूँ, कुछ की गुह्य नहीं रखता। तुम्हारा पुत्र जगका आधारस्तम्भ और धर्मका आरम्भ करनेवाला होगा ॥६॥ तब वहीं, उस कालके आनेपर कि जब आकाशका अन्तराल नक्षत्रोंसे शोभित था, कल्पवृक्षोंके नष्ट हो जानेसे जनतामें असन्तोष बढ़ रहा था, सूर्य और चन्द्रके बिम्ब अन्धकार नष्ट करने लगे थे, अवसर्पिणीकालरूपी नागिन प्रवेश कर चुकी थी, मनुष्यके भोगों और प्रचुर सुखोंको काल अपने ग्रासमें भर चुका था, तब माया-महामोहके बन्धन तोड़ने, श्रेष्ठ प्रचुर पुण्योंका संचय करने, सोलह तपभावनाओंकी प्रभावना, विश्वके द्वारा नमित तीर्थकर नामके समान, निपुण और निन्दनीय इन्द्रियोंको नष्ट करने, तैंतीस सागर आयु भोगनेके लिए जन्मान्तरमें बांधे गये पुण्यके प्रभावसे, हिम-हार और नीहारके समान सफेद बैलके रूपमें आसाढ़ माहके कृष्णपक्षकी द्वितीयाको उत्तराषाढ नक्षत्र में, सर्वार्थसिद्धि विमानसे अवतरित होकर परमेश्वर जिनने माताके गर्भमें उसी प्रकार प्रवेश किया जिस प्रकार सुन्दर चन्द्रबिम्ब शरद् मेघोंके बीच तथा जलबिन्दु कमलिनी पत्रके बीच प्रवेश करता है। देवता आये और गर्भवासको नमस्कार तथा राजदेवीकी प्रशंसा करके चले गये। उस दिन राक्षसेन्द्रों और नागेन्द्रों द्वारा मान्य इन्द्रराजकी आज्ञासे कुबेरने रत्नोंकी वर्षा की । तबतक कि जब वर्षमें ३ माह कम थे, ( अर्थात् ९ माह)। घत्ता-उदरके भीतर स्वामी बिना किसी बाधाके बढ़ने लगे। उनके शरीरकी किरणें मरुदेवीकी देहपर इस प्रकार प्रसरित होने लगीं, मानो सूर्यको किरणें नवमेघपर प्रसरित हो रही हों ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy