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________________ १. १८. १३.] हिन्दी अनुवाद मानो शत्रुओंके वंशको जलानेमें अग्नि । सीताके मनके समान, जो रामाभिराम (जिसे राम और रामा सुन्दर है), है जो सूर्यके समान दूसरोंके द्वारा अलंध्य है । जो अपने समयके अनुसार कार्योंको सम्पादित करनेवाला है, जो हनुमान्के समान अपना स्थैर्य प्रकट करनेवाला है, वज्रदण्डकी तरह, जिसने लोह ( लोहा / लोभ ) को नष्ट कर दिया है, जो व्याधाको तरह मयसमूह ( मद / मृग समूह ) को नष्ट करनेवाला है, व्रतधारीकी तरह जो गुरुजनोंके प्रति विनीत है, ऐरावत गजकी भांति जो अखण्डित'दानवाला है, योगीश्वरके समान, क्रोध और हर्षको नष्ट करनेवाला है, मानो क्षात्रधर्म ही पुरुष रूपमें स्थित हो गया हो। वह विग्रह और सन्धिके स्थानको जानता है, मानो वह महामुख्य वैयाकरण हो। वह सप्तांग राज्यका पालन इस प्रकार करता है, जैसे प्रकृतियों से निबद्ध उसकी देह हो। पवनके समान जिसने मन्दमेह ( मन्द मेघ / मेधा-बुद्धि ) को नष्ट कर दिया है। गोपालके समान जो महिषी ( पट्टरानी और भैंस ) से स्नेह करनेवाला है। जिनके चरण माण्डलीक राजाओंके मुकुटोंसे घर्षित हैं ऐसा वह जिनेन्द्रनाथके समान निखिल मनुष्य राजाओंकी शरण है। पत्ता-एक दिन लम्बी बांहोंवाला वह राजा अपने सिंहासनपर बैठा हुआ था। चेलना देवीसे शोभित वह ऐसा जान पड़ता था मानो नवलताओंने कल्पवृक्षको आलिंगित कर लिया हो ॥१७॥ १, अतुलित बलवाला, शत्रुकुलके लिए प्रलयकालके समान, धरतीका श्रेष्ठ स्वामी वह राजा जब बैठा हुआ था कि इतने में, जिसने सिररूपी शिखरपर अपनी बाहुरूपी डालें चढ़ा रखी हैं, ऐसा उद्यानपाल वहाँ आया। अनवरत सामन्तोंकी सेवा करनेवाला वह कहता है-“हे देव, सुनिए, कामदेवके बाणोंके प्रसारको शान्त करने में समर्थ, समस्त मंगलोंके आश्रय, प्रशस्त, सूर्य, विद्याधर और मनुष्योंके द्वारा वन्दनीय-चरण, त्रिलोक स्वामी जिन, वीतराग, इन्द्रके द्वारा जिनका समवसरण बनाया गया है, जो चारों निकायोंके देवोंको आनन्द देनेवाले चौंतीस अतिशय विशेषोंसे युक्त हैं, ऐसे अहत् महान् अनन्त सन्त परमात्मा परम महानुभाव वीर तीर्थंकर देवाधिदेव जिन्हें केवलज्ञान उत्पन्न है, ऐसे विमलज्ञानवाले, आठ प्रातिहार्योंके चिह्नोंवाले, विश्वके पापरूपी अन्धकारको दूर करनेके लिए एकमात्र सूर्य, स्वामी वर्धमान विपुलाचलपर आये हैं। यह सुनकर, शत्रुओंके हृदयोंके लिए शल्यके समान, शत्रुनगरके लिए दावानल, सुभटोंमें मल्ल, तथा जिसका जिनधर्मके लिए अनुराग बढ़ रहा है ऐसे उस राजाधिराजने आसन छोड़कर, शीघ्र सात पैर चलकर, निम्नलिखित स्तुति वचन कहते हुए प्रणाम किया। १. सप्तधातुओंसे । २. लम्बे हाथोंवाला । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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