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१. १४.११] हिन्दी अनुवाद
१५ चपल पूंछ उठाये हुए बच्छोंका कुल है, और खेलते हुए ग्वालबालोंसे युक्त गोकुल हैं। जहां चारचार अंगुलके कोमल तृण हैं और सघन दानोंवाले धान्योंसे भरपूर खेत हैं।
घत्ता-उस मगध देशमें चूनेके धवल भवनोंवाला नेत्रोंके लिए आनन्ददायक राजगृह नामका समृद्ध नगर है, जो ऐसा लगता है मानो कुलाचलरूपी स्तनोंको धारण करनेवाली वसुमतीरूपी नारीने आभूषण धारण कर रखा हो ॥१२॥
१३ जिसके उद्यान-वन, कुलोंके समान, संकेतागत विरहीजन [ संकेतसे जिनमें विरहीजन आते हैं | पक्षमें जिनमें संकेतसे विरहीजन नहीं आते ], साशोकप्रवद्धितकंचन [ जिनमें अशोक वृक्षोंके साथ चम्पक वृक्ष बढ़ रहे हैं | पक्षमें, हर्षके साथ स्वर्ण बढ़ रहा है ], बहुलोक दत्त नाना फल (बहुत लोकोंमें नाना प्रकारके फल देनेवाले) और धर्मोज्ज्वल (धर्म/अर्जुन वृक्षसे उज्ज्वल, धर्मसे उज्ज्वल ) हैं। जहां उद्यान, मधु ( पराग और मद्य ) के कुल्लोंसे सिंचित भावी रणके समान हैं। जो विभरित ( विस्मृत और विस्मित कर देनेवाले ) आभरणोंसे अंचित हैं, जो सीमन्तिनियोंके चरणकमलोंसे आहत हैं, जो बढ़ते हुए वृक्षोंसे वृद्धिको प्राप्त हो रहे हैं, जिनमें (उद्यानोंमें) कोयलोंके द्वारा मान्य सुभग 'आण' शब्द किया जा रहा है, ( रण में ) प्रियाओंके द्वारा मान्य सुभग आज्ञा शब्द ( गजमुक्ता लाओ, युद्ध जीतकर आना इत्यादि ) किया जा रहा है, जहाँ ( उद्यानोंमें ) बाप और अर्जुन वृक्ष दिखाई दे रहे हैं, जहां ( रण में ) धनुष और बाण दिखाई दे रहे हैं। जहां ( उद्यानों और युद्ध में ) सूर्य एवं शूरवीरोंकी प्रभाका विचरण अवरुद्ध हो रहा है, जहाँका जल नवयौवनकी तरह उत्कलित ( कल्लोलमालासे शोभित और कलि रहित ) है, जो सज्जनोंके मनोंकी तरह अत्यन्त स्वच्छ है, मत्स्योंके द्वारा मान्य जो जल दूसरोंके कार्यके समान शीतल है। जहां (सरोवरोंमें ) कमलने अपना कांटोंसे भयंकर, लोगोंको नोचनेवाला नाल पानीमें छिपा लिया है, तथा विकासको प्राप्त होता हुआ कोश बाहर रख छोड़ा है, बताओ कौन गुणोंसे अपने दोषको नहीं ढकता। जहां-जहां भ्रमर है, वहां-वहाँपर वह लक्ष्मीके नेत्रोंके अंजनके संग्रहके समान शोभित होता है।
पत्ता-पवनसे उड़ता हुआ, सुनहला, मिश्रित कुसुम-पराग मुझ कवि ( पुष्पदन्त ) को ऐसा लगता है, मानो सूर्यरूपी चूड़ामणिवाली आकाशरूपी लक्ष्मीने कंचुकी-वस्त्र पहन रखा हो ॥१३॥
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जहाँ क्रीडापर्वतोंके शिखरोंके भीतर कोमल दलवाले लतागृहोंमें पक्षीगण थोड़ा-थोड़ा दिखना, और विटोंके द्वारा मान्य कामकी अव्यक्त ध्वनि करना सीख रहे हैं । जहाँ पके हुए धान्यके खेतोंसे भूमि ऐसी शोभित है मानो उसने उपरितन वस्त्रके प्रावरण ( दुपट्टे ) को ओढ़ रखा हो। जो (प्रावरण) लम्बा, पीला और गिरते हुए शुकोंके पंखोंके समान चंचल है। जहाँ अनेक गोधन जो, कंगु और मूग खाते हैं, फिर घास नहीं खाते । जहाँ गोपालबाल रसका पान करते हैं और गुलाबके फूलोंकी सेजपर सोते हैं। जहां क्रोध करनेवाले शुकने अपनी चोंचसे आम्रकुसुमकी मंजरीको आहत कर दिया है। जहाँपर समतल राजमार्ग शोभित है। उसपर वाहनोंके पैरोंसे आहत धूल फैल रही है। जहाँ सईसोंके द्वारा घोड़े घुमाये जा रहे हैं, जैसे खोटे शासनोंसे अज्ञानीजनोंको धुमाया जाता है । महावतोंके द्वारा हाथी वश में किये जा रहे हैं, जैसे सपेरोंके झापा
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