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पाण्डवपुराणम् श्रृण्वकं दृष्टमित्याख्यत्तनाग्यखिलचेष्टितम् । अहं कुतः कुतो धर्मः संसर्गादस्य सोऽभवत्।।१५ ममेह सिद्धिपर्यन्तो नान्यत्सत्संगमाद्वितम् । ध्यात्वेति मुक्तकोपोऽसौ कृतज्ञो जयमुत्तमम् ॥१६ रत्नैः संपूज्य स्वस्यापि प्रपञ्च न्यगदत्सुरः। स्मर्तव्योऽहं स्वकार्येऽपीत्युक्त्वा स्वगृहमासदत्॥१७ जयोऽपि चक्रिणा सार्धमाक्रम्य क्रमतो दिशः। विक्रमी क्रमण मुक्त्वा संयमीव शमं श्रितः॥१८ अथ काश्यभिधो देशो विकाशी विष्टपेऽखिले । भोगभूमिक्षयाद्भोगभूमिः साक्षादिवाभवत्।।१९ वाराणसी पुरी तत्रामानैः सौधैरिवाहसत् । स्वर्विमानानि संजित्य शुभां तामामरी पुरीम् ॥२० तत्पतिः कम्पितारातिरकम्पनो बभूव च । पूर्वोपार्जितपुण्यस्य वर्धनं रक्षणं श्रियः ॥२१ तत्प्रिया सुप्रभादेवी सुप्रभा हिमगोरिव । प्रभाकुमुदखण्डानि दधती विपुलश्रिया ॥२२ सहस्रं तत्सुता जाताः स्फुरन्तश्चांशवो वः । हेमाङ्गदसुकेतुश्रीसुकान्ताद्या इवोन्नताः ॥२३ तयोः सुलोचनालक्ष्मीवत्यौ पुत्र्यौ बभूवतुः । हिमवत्पअयोगङ्गासिन्धू वानु ततः शुभे ॥२४ सुलोचना परा पुत्री सुलोचना कलागुणैः । मनोरमा यथा लक्ष्मीश्चन्द्रिकेव जगत्प्रिया ॥२५
इधर पराक्रमी जयकुमार भी चक्रवर्ती भरतश्वर के साथ सर्व दिशाओंको क्रमसे आक्रमण कर अर्थात् दिग्विजय कर लौट आया । अनन्तर दिग्विजयके कार्यको छोड कर संयमीके समान शमको प्राप्त हुआ ॥ १८॥
[अकम्पन-नृपकन्या सुलोचनाका वृत्त ] इस भूमण्डलमें प्रसिद्ध काशी नामक देश है। वह भोगभूमिका क्षय होने पर साक्षात् भोगभूमीके समान दीखता था। उस देशमें वाराणसी नामक नगरी अपने अत्युच्च प्रासादोंके द्वारा स्वर्गीय विमानोंको जीतकर शुभ ऐसी देवनगरीको मानो हसती थी ॥१९-२०॥ शत्रुओंके छक्के छुडानेवाला, पूर्वोपार्जित पुण्यको बढ़ानेवाला, तथा लक्ष्मीका रक्षण करनेवाला अकम्पन नामका राजा उस नगरीका स्वामी था ।।२१।। अपनी विपुल श्रीसे कुमुदखण्डोंको धारण करनेवाली चन्द्रमाकी कान्तीके समान सुप्रभा नामक देवी उस राजाकी पत्नी थी। अर्थात् जैसे चन्द्रमाकी किरणें अपनी विपुलश्रीपे निशाविकामी कमल समूहको प्रफुल्लित करती है वैसेही यह रानी अपने विपुट ऐश्वर्यसे (कु-पृथ्वी; मुद-आनन्द, षण्ड-समूह) पृथ्वीको आनंदित करती थी ।। २२ ॥ राजा-रानीको मूर्यकी चमकीली हजार किरणोंके समान उन्नतिशाली हजार पुत्र हुए । हेमांगद, सुकेतु, श्रीसुकान्त इत्यादि उनके नाम थे ॥ २३ ॥ इस दम्पतीको हिमवान पर्वतके पद्मदसे उत्पन्न गंगा सिन्धु नदियोंकी तरह सुलोचना और लक्ष्मीवती नामकी दो शुभ पुत्रियां हुईं ॥ २४ ॥ सुन्दर आंखोवाली सुलोचना अपने कलागुणोंसे लक्ष्मीके समान जनमनोंको हरती थी और चन्द्रकी कान्तिके समान जगत्को प्रिय थी ॥ २५ ॥ शुक्लपक्षकी रात्री जिस तरह चन्द्रमाकी कोरकी कला और गुणोंको बढाती है उसी तरह सुमति नामक वायने भी मुलोचनाके गुण और कटाओंको वढाया ।। २६ ॥ सुलोचनाकी जांधे के टेके खबेके समान होनेसे
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