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पाण्डवपुराणम् इति सर्वस्वमालोच्य पुराणं प्रोच्यते बुधैः । वक्ता श्रोता कथास्तत्र विचार्याश्वारुलक्षणाः ॥४४ वक्ता व्यक्तं वदेद्वाक्यं वाग्मी धीमान् धृतिकरः। शुद्धाशयो महाप्राज्ञो व्यक्तलोकस्थितिः पटुः।।४५ प्राप्तशास्त्रार्थसर्वस्व प्रास्ताशःप्रशमाङ्कितः। जितेन्द्रियो जितात्मा च सौम्यमूर्तिः सुदृक् शुभः४६ तीर्थतत्त्वार्थविज्ञानी षण्मतार्थविचक्षणः । नैयायिका स्वान्यमतवादिसेवितशासनः ॥४७ सवतो व्रतिभिः सेव्यो जिनशासनवत्सलः । लक्षणैर्लक्षितो दक्षः सुपक्षः क्षितिपैः स्तुतः ॥४८ सदा दृष्टोत्तरः श्रीमान्सुकुलो विपुलाशयः । सुदेशजः सुजातिश्च प्रतिभाभरभूषणः ।। ४९ विशिष्टोऽनिष्टनिर्मुक्तः सम्यग्दृष्टिःसुमृष्टवाक् । सर्वेष्टस्पष्टगमको गरिष्ठो हृष्टमानसः॥ ५० वादीशो वादिवारेण वन्दितः कविशेखरः । परनिन्दातिगः शास्ता गुरुः सच्छीलसागरः ॥५१ श्रोता प्रशस्यते शीललीलालङ्कृतविग्रहः । सद्भिः सुदर्शनः श्रीमान्नानालक्षणलक्षितः ॥५२. दाता भोक्ता व्रताधिष्ठो विशिष्टजनजीवनः । पूर्णाक्षः पूर्णचेतस्को हेयादेयार्थदृक् शुचिः ॥५३
प्रकारका कहा गया है । ४३ ॥ इस प्रकार सभी अपेक्षाओंसे विचार कर विद्वान् पुराणका कथन करते हैं । यहां वक्ता, श्रोता और कथाके सुन्दरलक्षण भी विचार करने योग्य हैं ॥ ४४ ।। .. [वक्ताके लक्षण ] वाक्योंका उच्चार स्पष्ट करनेवाला, वाग्मी, युक्तियुक्तभाषण करनेमें चतुर, बुद्धिमान्, संतोष उत्पन्न करनेवाला, निर्मल अभिप्रायवाला, महाचतुर, लोकव्यवहारका ज्ञाता, प्रवीण, शास्त्रोंके मार्गका ज्ञाता,निस्पृह,प्रशान्तकषायी,जितेन्द्रिय, जितात्मा-संयमी,सौम्य, सुंदरदृष्टियुक्त, कल्याणरूप, श्रुतज्ञानको धारण करनेवाला, जीवादि तत्त्वोंका ज्ञाता, बौद्ध, सांख्य, मीमांसकादि छह मतोंके पदाथोंका ज्ञाता, न्यायपूर्वक प्रतिपादन करनेवाला, जैन विद्वान् और अन्य विद्वानोंको जिसका उपदेश प्रिय लगता है ऐसा, व्रतयुक्त और व्रतिमान्य, जैनमतमें प्रेम रखनेवाला, सामुद्रिक लक्षणोंस युक्त, स्वपक्ष-सिद्धि करनेमें तत्पर, आगमोक्त पक्षका प्रतिपादक, राजमान्य, श्रोताके प्रश्नका उत्तर जिसके मनमें तत्काल प्रगट होता है, सुन्दर और कुलीन, उदारचित्त, आर्यदेशमें जन्मा हुआ, उत्तम जातिमें पैदा हआ, नई नई कल्पना जिसके मनमें उत्पन्न होती है, शिष्टाचारी, निर्व्यसनी, सम्यग्दृष्टि, मधुर बोलनेवाला, आगममान्य विषयोंको स्पष्ट करनेवाली बुद्धिका धारक, सम्मान्य, प्रसन्नचित्तवाला, वादियोंका प्रभु, वादिओंके समूहसे वंदित, [ मान्य ] श्रेष्ठ कवि, परनिंदासे सदा दूर रहनेवाला, हितोपदेशी, तथा शीलसागर, मुस्वभाव, व्रतरक्षण, ब्रह्मचर्य और सद्गुणपालन, इन गुणोंका सागर श्रेष्ठ वक्ता होता है ।। ४५--५१ ॥
[श्रोताके लक्षण] जिसका शरीर शीलसे भूषित हुआ हो, जो सम्यग्दृष्टि, शोभायुक्त, सामुद्रिक नानासुलक्षणोंसे युक्त शरीरवाला, दाता, भोक्ता, व्रतमें तत्पर, विशिष्ट जनोंको-( धार्मिक जनोंको ) आश्रय देनेवाला, आंख कान वगरेह इंद्रियोंसे परिपूर्ण, स्थिरमनवाला, ग्राह्याग्राह्य पदार्थोका विचार करने वाला, पवित्र, निर्लोभी, शास्त्र सुननेकी इच्छा रखनेवाला, शास्त्रश्रवण करनेवाला, सुना
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