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पाण्डवपुराणम् प्रोद्भताद्भतदुर्भावविसारिविसरान्तरे'। भवाम्बुधौ जनानां त्वं नावायसे च तारणे ॥७ भवात्तपतो दत्त्वा धर्महस्ताबलम्बनम् । अस्मानुद्धर धर्मेश पतितान्पापकर्मतः ।।८ . दक्ष क्षिप्रेण सदीक्षां देह्यस्मभ्यं शुभावह । त्वत्प्रसादेन देवेश वयं लिप्सामहे शिवम्.॥९ दचा संसारकान्तारे वृषाख्यसामवायिकम् । अस्मान्प्रापय वै क्षिप्तं मोक्षक्षेत्रं त्वमय भोः॥१०. इति संप्रार्थ्य भूमीशा जिनं दीक्षासमुद्यताः । ददुः पुत्राय सद्राज्यं प्राज्यं भूरिनरैः स्तुतम् ॥ बाह्यान्दशविधाञ्शीघ्र ग्रहानिव हतात्मनः । क्षेत्रवास्तुहिरण्यादींस्तत्यजुस्ते परिग्रहान् ॥१२ मिथ्यात्ववेदरागांश्च पड्डास्यादीन्सुपाण्डवाः । कषायानत्यश्चित्ताचतुरोऽभ्यन्तरोपर्धान् ॥ . जिनाज्ञया समुन्मूल्य चञ्चूर्यान्कचसंचयान् । त्रयोदशविध वृत्तं जगृहुः पाण्डुनन्दनाः ॥ राजीमत्यार्यिकाभ्यणे कुन्ती हित्वा सुकुन्तलान् । सुभद्रया च द्रौपद्या संयमं परमग्रहीत् ।। अन्ये भूपास्तथा वध्वो भूरिशोज्न्याः सुसंयमम् । जगृहुर्भावती भव्या भवभीता भयापहाः ।। युधिष्ठिरो गरिष्ठोऽथ विशिष्टोऽनिष्टवर्जितः । निष्ठरं मोहमलं हि जिगाय जगतां गुरुः ॥१७
उत्पन्न हुए आश्चर्यकारक अशुभ परिणामरूपी मत्स्योंका समूह जिसमें हैं, ऐसे भवसमुद्र हे प्रभो लोगोंको तारने के लिये आप नौकाके समान है. ॥६-७ ॥ हे प्रभो, हम पापकर्मसे संसाररूपी अंधकारमय रूपमें पड़े हैं, हे धर्मके स्वामिन् , आप हमें धर्महस्तका. आश्रय देकर हमारा उद्धार करें। हे चतुर प्रभो, हमारा शुभ कार्य करनेवाली उत्तम दीक्षा हमें आप दीजिये । हे देवोंके ईश, आपकी कृपासे हम मोक्षको चाहते हैं ॥८-९॥ हे प्रभो, इस संसाररूपवनमें आज धर्मका साहाय्य देकर हम लोगोंको आप शीघ्र मुक्तिक्षेत्रको पोहोंचा दो॥१०॥ उपर्युक्त प्रकारसे दीक्षा लेनेके लिये उद्यत हुए पाण्डवोंने प्रभुको विज्ञप्ति की। उन्होंने अनेक मनुष्योंसे प्रशंसनीय उत्तम नीतियुक्त राज्य अपने पुत्रको दिया ॥११॥ मिथ्या व, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद हास्य, रति, अरति, शोक, भयजुगुप्सा तथा क्रोध, मान, माया और लोभ ऐसे चार कषाय ये सब अन्तरंग चौदह परिग्रह हैं , नेमिप्रभुकी आज्ञासे इनको नष्ट कर तथा केश-समूहको (मूंछे, दाढी और मस्तकके केशोंका) लोंच करके पाण्डवोंने पांच महावतं, तीन गुप्तियां और पांच समितियां ऐसा तेरह प्रकारका चारित्र धारण किया ॥ १२-१४ ।।
.. [कुन्त्यादिकोंका दीक्षा ग्रहण ] कुन्तीमाताने सुभद्रा और द्रौपदीके साथ राजीमति आर्थिकाके पास जाकर केशलोंच किया और आर्यिकाओंका उत्तम संयम धारण किया ॥ १५ ॥ अन्य राजगणने तथा अन्य बहुत स्त्रियोंने जो कि संसारसे भययुक्त और संयमके भयसे दूर तथा भव्य थे भावसे मनःपूर्वक उत्तम संयमब्रहण किया ॥ १६ ॥ विशिष्ट निर्मल परिणामवाले अतएव गरिष्ठ-श्रेष्ठ, अनिष्ट परिणामोंसे रहित युधिष्ठिर मुनिराजने निष्ठुर मोहमल्लको जीत लिया और
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